Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
noImage

सय्यद वहीदुद्दीन सलीम

1869 - 1927 | हैदराबाद, भारत

सय्यद वहीदुद्दीन सलीम

लेख 9

उद्धरण 6

हमारे शो'रा जब ग़ज़ल लिखने बैठते हैं तो पहले उस ग़ज़ल के लिए बहुत से क़ाफ़िए जमा' करके एक जगह लिख लेते हैं, फिर‏‎ एक ‎क़ाफ़िए को पकड़ कर उस पर शे'र तैयार करना चाहते हैं। ये क़ाफ़िया जिस ख़याल के अदा करने पर मजबूर करता है उसी ख़याल को ‎अदा‏‎ कर देते हैं। फिर दूसरे क़ाफ़िए को लेते हैं, ये दूसरा क़ाफ़िया भी जिस ख़याल के अदा करने का तक़ाज़ा करता है उसी ख़याल को ‎‏ज़ाहिर करते हैं, चाहे ये ख़याल पहले ख़याल के बर-ख़िलाफ़ हो। अगर हमारी ग़ज़ल के मज़ामीन का तर्जुमा दुनिया की किसी तरक़्क़ी-‎याफ़्ता ‎‏ज़बान में किया जाए, जिसमें ग़ैर-मुसलसल नज़्म का पता नहीं है तो उस ज़बान के बोलने वाले नौ दस शे'र की ग़ज़ल में ‎हमारे‏‎ शाइ'र के इस इख़तिलाफ़-ए-ख़याल को देखकर हैरान रह जाएं। उनको इस बात पर और भी तअ'ज्जुब होगा कि एक शे'र में जो ‎‏मज़मून अदा किया गया है, उसके ठीक बर-ख़िलाफ़ दूसरे शे'र का मज़मून है। कुछ पता नहीं चलता कि शाइ'र का असली ख़याल‏‎ ‎क्या है। वो पहले ख़याल को मानता है या दूसरे ख़याल को। उसकी क़ल्बी सदा पहले शे'र में है या दूसरे शे'र में।

  • शेयर कीजिए

औरतों का बनाओ-सिंघार और ज़ीनत-ओ-आराइश का जो शौक़ है, वो उनके लिए उनकी बहुत सी बीमारियों का क़ुदरती इलाज है और‏‎ ‎किसी औरत को इस शौक़ के पूरा करने से बा'ज़ रखना ना-मुनासिब और उनके हक़ में निहायत मुज़िर है।

  • शेयर कीजिए

बलाग़त के मआ'नी ये हैं कि कम से कम अलफ़ाज़ से ज़्यादा से ज़्यादा मअ'नी समझे जाएँ। ये बात जिस क़दर तलमीहात में‏‎ पाई ‎जाती है, अलफ़ाज़ की दीगर अक़्साम में नहीं पाई जाती। जिस ज़बान में तलमीहात कम हैं या बिल्कुल नहीं हैं, वो बलाग़त‏‎ के दर्जे से ‎गिरी हुई है।

  • शेयर कीजिए

सच्ची शाइ'री से जिसकी बुनियाद हक़ीक़त और वाक़ि'इय्यत पर रखी जाती है और जिसमें अख़लाक़ के मुफ़ीद पहलू दिखाए जाते हैं‏‎ ‎और मुज़िर और ना-पाक जज़बात का ख़ाका उड़ाया जाता है, दुनिया में निहायत आला दर्जा की इस्लाह होती है और इससे सोसाइटी ‎की‏‎ हालत दिन-ब-दिन तरक़्क़ी करती है और क़ौम और मुल्क को फ़ाएदा पहुँचता है। बर-ख़िलाफ़ इसके जो शाइ'र मुबालग़ों और ‎फ़ुज़ूल‏‎-गोइयों और नफ़्स की बेजा उमंगों के इज़हार में मशग़ूल रहते हैं, वो दुनिया के लिए निहायत ख़ौफ़नाक दरिंदे हैं। वो लोगों ‎‏को ‎शहद में ज़हर मिलाकर चटाते हैं और इंसान के पर्दे में शैतान बन कर आते हैं। ख़ुदा हमारी क़ौम को ऐसे शाइ'रों से‏‎ और उनकी ऐसी ‎शाइ'री से नजात दे।

  • शेयर कीजिए

इक़बाल का फ़ारसी अंदाज़-ए-बयान इख़्तियार करना उर्दू ज़बान के लिए सरासर बद-क़िस्मती है मगर वो अपनी मस्लेहत को ख़ुद ‎ही बेहतर जानते ‎‏हैं‎।‎

  • शेयर कीजिए

अशआर 2

किस क़दर तुंद भरी है मिरे पैमाने में

कि छिड़क दूँ तो लगे आग अभी मयख़ाने में

  • शेयर कीजिए

भला वो ख़ातिर-ए-आज़ुर्दा की तस्कीन क्या जानें

जिन्हों ने ख़ुद-नुमाई ख़ुद-परस्ती ज़िंदगी भर की

  • शेयर कीजिए
 

ग़ज़ल 2

 

नज़्म 4

 

पुस्तकें 24

"हैदराबाद" के और लेखक

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए