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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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विजय शर्मा

1995 | मुंबई, भारत

नई पीढ़ी के शायरों में शुमार

नई पीढ़ी के शायरों में शुमार

विजय शर्मा के शेर

क्यूँ तश्बीह फूल हो उस की

वो जो ख़ुशबू सा दास्तान में है

ज़िंदगी कभी इंकार का सबब भी सुन

मैं थक गया हूँ तेरी हाँ में हाँ मिलाते हुए

नई नहीं है ये तन्हाई मेरे हुजरे की

मरज़ हो कोई भी है चारागर से डर जाना

'अर्श' बहारों में भी आया एक नज़ारा पतझड़ का

सब्ज़ शजर के सब्ज़ तने पर इक सूखी सी डाली थी

नया नया है सो कह लो इसे अकेला-पन

फिर इस मरज़ के कई और नाम आएँगे

दश्त की ना-तमाम राहों पर

कोई साथी है तो शजर तन्हा

मैं बहुत दूर से आया हूँ इक उम्मीद लिए

बैठने मत दो मगर नाम तो बतलाने दो

ये बहस छोड़ के कितनी हसीन है दुनिया

तू ये बता कि तेरा दिल कहीं लगा कि नहीं

इक मोहब्बत भरे सिनेमा में

मेरे मरने का सीन मेरे ख़्वाब

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