- पुस्तक सूची 188275
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1971
औषधि919 आंदोलन300 नॉवेल / उपन्यास4697 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी13
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1454
- दोहा65
- महा-काव्य109
- व्याख्या200
- गीत81
- ग़ज़ल1184
- हाइकु12
- हम्द46
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1593
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात689
- माहिया19
- काव्य संग्रह5082
- मर्सिया382
- मसनवी833
- मुसद्दस58
- नात559
- नज़्म1255
- अन्य71
- पहेली16
- क़सीदा189
- क़व्वाली19
- क़ित'अ62
- रुबाई297
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त26
वाजिदा तबस्सुम की कहानियाँ
नथ उतराई
बार माँ के साथ पीटी बजाने किसी रईस की महफ़िल में गई। हारमोनियम बजाते-बजाते दो एक-बार किसी से आँखें मिला बैठी। मुलाक़ातें बढ़ती गईं, पता चला मोटर चलाने पर नौकर हैं। इतनी-उतनी नहीं पूरे डेढ़ सौ तनख़्वाह पाते हैं... हुनर हाथ में हो तो इंसान कहीं भी हाथ पाँव
उतरन
नवाब के घर में पली-बढ़ी एक खादिमा की बेटी की कहानी, जो हमेशा इस बात से दुखी रहती है कि उसे मालिक की बेटी की उतरन पहननी पड़ती है। हालांकि दोनों लड़कियाँ साथ-साथ खेलती, पढ़ती हुई जवान होती हैं। मगर उसके मन से उतरन पहनने की टीस कभी नहीं जाती। फिर वह दिन भी आता है जब नवाब की बेटी की बारात आती है और ख़ादिमा की बेटी हसद और इंतिक़ाम के जज़्बे में उससे पहले उसके शौहर के साथ सो जाती है।
मंज़िल
यह एक ऐसे बच्चे की कहानी है जिसे लगता है कि उसके माँ-बाप उससे प्यार नहीं करते। उसने अपने माँ-बाप का प्यार हासिल करने के लिए उनकी ख़िदमतें की थी। घर के काम-काज में हाथ बंटाया था। कुत्ता पाला था। आड़ी-तिरछी लकीरें खिंची थीं। भाइयों से दोस्ती की, बिल्ली पाली, मगर कोई भी अपना न हो सका। मिट्टी के खिलौनों में जी लगाना चाहा वो भी दूर हो गए। सब तरफ से मायूस होकर उसने मरने का फैसला कर लिया। मगर तभी उसकी ज़िंदगी में एक लड़की आई और सब कुछ बदल गया।
ज़रा हौर ऊप्पर
एक हैदराबादी नवाब की कहानी, जो घर में बीवी के मौजूद होते हुए भी बांदियों से दिल बहलाता है। इस पर उसका बीवी के साथ बहुत झगड़ा होता है। मगर वह अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता। शौहर की तरफ़ से मायूस होकर उसकी बीवी भी घर में काम करने वाले नौकरों के साथ लुत्फ़ उठाने लगती है।
ऐ रूद-ए-मूसा
यह एक ऐसी ख़ुद्दार लड़की की कहानी है, जो दुनिया की ठोकरों में रुलती हुई वेश्या बन जाती है। विभाजन के दौरान हुए दंगों में उसके बाप के मारे जाने के बाद उसकी और उसकी माँ की ज़िम्मेदारी उसके भाई के सिर आ गई थी। एक रोज़ वह बहन के साथ अपने बॉस से मिलने गया था तो उन्होंने उससे उसका हाथ माँग लिया था। मगर अगले रोज़ बॉस के बाप ने भी उससे शादी करने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की थी। उसने उस ख़्वाहिश को ठुकरा दिया था और घर से निकल भागी।
शोले
यह एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो एक घर में गर्वनेंस की नौकरी करते हुए अपने बॉस से प्यार करने लगती है। हालांकि उसकी मंगनी हो चुकी है। उसका बॉस भी जानता है। मगर वह अपने जज़्बात को छुपा नहीं पाती। बॉस जानता है कि वह उससे मोहब्बत करती है, लेकिन वह इंकार कर देता है। जिस रोज़ उसकी डोली उठती है तब वह सज्दे में गिरकर सिसक-सिसक कर कहता है कि मुझे तुमसे मोहब्बत है।
धनिक के रंग नहीं
एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो घर की ज़िम्मेदारियों की वजह से शादी करने से इंकार कर देता है। उसकी बेवा माँ और बेवा बहन उसे हर मुमकिन शादी के लिए तैयार करने की कोशिश करती हैं। मगर वह इनकार करता जाता है। फिर घर में एक ऐसी लड़की आती है, जिससे वह शादी करने पर राज़ी हो जाता है। तभी कुछ ऐसा होता है कि वह उससे भी शादी करने से इनकार कर देता है।
जन्नती जोड़ा
यह एक नवाब के घर में रहने वाले एक अंधे बूढ़े की कहानी है, जिससे नवाब की छोटी लड़की बहुत मोहब्बत करती है। वह उसके खाने-पीने का पूरा ख़्याल रखती है। जवान होने पर जब लड़की की शादी होती है अंधा बूढ़ा अपनी हैसियत के मुताबिक़ उसके लिए एक सूती जोड़ा तैयारी कराता है, जिसे लड़की की माँ ठुकरा देती है। मगर नवाब उस जोड़े को उठाकर अपनी आँखों से लगाता हुआ कहता है कि यह तो जन्नती जोड़ा है।
कोइला भई न राख
यह एक ऐसे जोड़े की कहानी है, जो एक-दूसरे से बहुत मोहब्बत करते हैं। लड़का जब पैसे कमाने के लिए शहर जाता है तो वह जिस क़दर अमीर होता जाता है उतना ही अपनी महबूबा से दूर होता जाता है। उसकी महबूबा उतनी ही शिद्दत के साथ उससे मोहब्बत करती जाती है। फिर एक दिन ऐसा भी आता है जब वह अपनी महबूबा की शादी अपने एक दोस्त से करा देता है।
ज़कात
एक ऐसे हैदराबादी नवाब की कहानी, जो अपनी सख़ावत के लिए मशहूर था। उसने कभी किसी से कुछ नहीं लिया था, हमेशा दिया ही था। एक बार एक ग़रीब लड़की पर उसका दिल आ जाता है। लड़की के माँ-बाप पहले तो नवाब को इंकार कर देते हैं मगर फिर हालात से मजबूर होकर अपनी लड़की को उसके पास भेज देते हैं। एक महफ़िल में जब नवाब के दोस्त उसकी नई बांदी की तारीफ़ करते हैं तो वह कहती है कि नवाब साहब तो सबको देते हैं मगर मैंने उन्हें अपना हुस्न दिया है, वह भी ज़क़ात में।
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1971
-