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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

ज़की तारिक़ के शेर

हम भी कहने लगे हैं रात को रात

हम भी गोया ख़राब होने लगे

इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा

मैं चुप रहा तो शिकस्ता मकान बोलेगा

रोज़ सुनता हूँ मैं हँसने की सदा

कौन ये मेरे सिवा है मुझ में

सिमटे हुए जज़्बों को बिखरने नहीं देता

ये आस का लम्हा हमें मरने नहीं देता

गुमान होता है मुझ को तुम्हारे आने का

हवा इधर से दबे पाँव जब गुज़रती है

अजनबी ख़ुशबू की आहट से महक उट्ठा बदन

क़हक़हों के लम्स से ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ रौशन हुआ

मेरे अंदर निहाँ है अक्स मिरा

आईने में है आप का परतव

दरीदा-जैब गरेबाँ भी चाक चाहता है

वो इश्क़ क्या है जो दामन को पाक चाहता है

'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे

हमें रास कभी आया साएबान कोई

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