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ज़किया मशहदी

1944 | पटना, भारत

महिला समस्याओं को अपनी कहानियों का विषय बनाने वाली मशहूर लेखिका, अपनी कहानी ‘पारसा बीबी का बघार’ के लिए प्रसिद्ध।

महिला समस्याओं को अपनी कहानियों का विषय बनाने वाली मशहूर लेखिका, अपनी कहानी ‘पारसा बीबी का बघार’ के लिए प्रसिद्ध।

ज़किया मशहदी की कहानियाँ

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भेड़िये

संयुक्त परिवार में दमन और शोषण का शिकार होती औरत की कहानी। वह एक ज़मींदार ब्राह्मण परिवार की बहू थी। उस परिवार ने क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए हर तरह की नीति अपना रखी थी। इसी के बल पर उसका उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत जाता था। घर चलाने के लिए अपने गूंगे-बहरे बेटे की एक कुशल गृहिणी से शादी करा दी थी। बेटा शहर में रहता था और बहू गाँव में। बहू बार-बार शहर जाने की ज़िद करती, पर उसे जाने नहीं दिया जाता। फिर एक रोज़़ उसे पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। यह सुनते ही वह घर छोड़कर जाने की पूरी तैयारी कर लेती है, मगर तभी उसे एहसास होता है कि शहर जाने के लिए वह जिस रास्ते से भी गुज़रेगी, हर उस रास्ते पर उसे एक भेड़िया बैठा मिलेगा।

काग़ज़ का रिश्ता

एक ऐसे व्यक्ति की कहानी, जिसने कभी भी अपनी पत्नी की क़द्र नहीं की। शादी के बाद से ही वह उससे दुखी रहता। हर समय मार-पीट करता रहता, घर से कई-कई दिनों के लिए ग़ायब हो जाता। फिर एक दिन वह एक चमार की लड़की को लेकर भाग गया और उसकी पत्नी को उसके भाई अपने घर ले आए। उन्होंने अपनी बहन पर उससे तलाक़़ लेने के लिए दबाव डाला, लेकिन वह राज़ी नहीं हुई। एक अर्से बाद पति ससुराल आया, अपनी पत्नी को लेने नहीं, पैसे माँगने के लिए। उसके सालों को जब उसके आने के उद्देश्य के बारे में पता चला तो उन्होंने उसे बहुत मारा। मार खाने के बाद जब पति वापस जाने लगा तो पत्नी ने पर्दे की ओट से उसे कुछ रूपये थमा दिए।

बिज़नेस

मज़दूर वर्ग से सम्बंध रखने वाले एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसके लिए पैसा कमाना ही सब कुछ है। गर्मियों में वह मिशनरी स्कूल के सामने रेहड़ी लगाया करता था और सर्दियों में जब स्कूल की छुट्टी होती तो सब्जी मार्केट में भुने चने और नमकीन बेचा करता था। घर में जब उसकी शादी की बात चली तो उसे अधिक पैसे कमाने की चिंता हुई। इसी बीच शहर में चुनाव हो रहे थे। अपने एक दोस्त की सलाह पर उसने चुनाव के दौरान पटाखों की रेहड़ी लगा ली। चुनाव परिणाम वाले दिन वह दो मुख्य पार्टियों के ऑफ़िस के पास पटाखों की रेहड़ी लिये खड़ा था और अपना कारोबार कर रहा था। उसे किसी पार्टी की हार-जीत से कोई मतलब नहीं था।

शनाख़्त

एक ऐसे ब्राह्मण ज़मींदार परिवार की कहानी, जिसने अपने एक बच्चे के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी एक मुस्लिम ख़िदमत-गुज़ार बाबू साईं को सौंप दी थी। हालाँकि उस परिवार ने बच्चे की देखभाल भी उसी तरह की थी, जैसे दूसरे बच्चों की हुई थी। परन्तु जैसे उस बच्चे को अन्न लगता ही नहीं था। सारा दिन कुछ न कुछ खाते रहने के बावजूद बच्चा एक दम सूखा काँटा सा दिखता था। बाबू साईं के संरक्षण में आने के बाद बच्चे के स्वास्थ्य में कुछ सुधार होने लगा था। बाबू साईं उसे गोश्त, मुर्ग़ा, यख़्नी सब कुछ खिलाता। अपने साथ तकिए पर भी ले जाता। बच्चे की ज़िद पर बाबू साईं ने उसे उर्दू भी सीखा दी थी। जब ब्राह्मण परिवार को इस बारे में पता चला तो उन्होंने यह कहते हुए बच्चे को वापस बुला लिया कि बाबु साईं तो उसे मुसलमान ही बना देगा।

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