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ज़किया मशहदी की कहानियाँ
डे केयर
यह कहानी एक कैंसर इंस्टिट्यूट के डे केअर यूनिट की एक दिन की गह्मा-गह्मी पर आधारित है। दो औरतें कुर्सी पर बैठी एक-दूसरे से वहाँ आने का कारण पूछती हैं। उनमें एक हिंदू और दूसरी मुसलमान है। हिंदू औरत अपने बेटे को लेकर आई है, जिसे ब्लड कैंसर है। मुसलमान औरत अपने शौहर से मिलने आई है। वे अपनी बीमारियों के बारे में बातें करती हैं, जिनके लिए धार्मिक पहचान कोई मायने नहीं रखती है। हिंदू औरत शुद्ध शाकाहारी है, लेकिन डॉक्टर के कहने पर वह अपने बेटे को चिकन खिलाती है। तभी माइक पर किसी का नाम पुकारा जाता है और वे दोनों औरतें पुकारे जा रहे नाम को ठीक से सुनने के लिए उस ओर चल पड़ती हैं।
अज्जन मामूं का बैठका
पूरे गाँव में अज्जन मामूं की बैठक ऐसी जगह है जहाँ हर तरह की ख़बरें पहुँचती रहती हैं। एक दिन अज्जन मामूं को ख़बर मिलती है कि हवेली में हरि प्रसाद बाबू का क़त्ल हो गया है। यह क़त्ल कुछ इस तरह से होता है कि अज्जन मामूं की बैठक का नक़्शा ही बदल जाता है।
भेड़िये
संयुक्त परिवार में दमन और शोषण का शिकार होती औरत की कहानी। वह एक ज़मींदार ब्राह्मण परिवार की बहू थी। उस परिवार ने क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए हर तरह की नीति अपना रखी थी। इसी के बल पर उसका उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत जाता था। घर चलाने के लिए अपने गूंगे-बहरे बेटे की एक कुशल गृहिणी से शादी करा दी थी। बेटा शहर में रहता था और बहू गाँव में। बहू बार-बार शहर जाने की ज़िद करती, पर उसे जाने नहीं दिया जाता। फिर एक रोज़़ उसे पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। यह सुनते ही वह घर छोड़कर जाने की पूरी तैयारी कर लेती है, मगर तभी उसे एहसास होता है कि शहर जाने के लिए वह जिस रास्ते से भी गुज़रेगी, हर उस रास्ते पर उसे एक भेड़िया बैठा मिलेगा।
माँ
ठण्डी हवा का झोंका हड्डियों के आर-पार हो गया। कड़ाके का जाड़ा पड़ रहा था, उस पर महावटें भी बरसने लगीं। पतली साड़ी को शानों के गिर्द कस कर लपेटे हुए मुन्नी को ख़याल आया कि ओसारे में टापे के नीचे उसकी चारो मुर्ग़ियाँ जो दुबक कर बैठी होंगी, उन पर टापे के
बिज़नेस
मज़दूर वर्ग से सम्बंध रखने वाले एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसके लिए पैसा कमाना ही सब कुछ है। गर्मियों में वह मिशनरी स्कूल के सामने रेहड़ी लगाया करता था और सर्दियों में जब स्कूल की छुट्टी होती तो सब्जी मार्केट में भुने चने और नमकीन बेचा करता था। घर में जब उसकी शादी की बात चली तो उसे अधिक पैसे कमाने की चिंता हुई। इसी बीच शहर में चुनाव हो रहे थे। अपने एक दोस्त की सलाह पर उसने चुनाव के दौरान पटाखों की रेहड़ी लगा ली। चुनाव परिणाम वाले दिन वह दो मुख्य पार्टियों के ऑफ़िस के पास पटाखों की रेहड़ी लिये खड़ा था और अपना कारोबार कर रहा था। उसे किसी पार्टी की हार-जीत से कोई मतलब नहीं था।
हरी बोल
कहानी बदलते वक़्त के साथ ख़ूनी रिश्तों में हो रहे बदलाव और स्वार्थपूर्ण रवैये को बयान करती है। वह एक अफ़सर की बीवी थी और एक आलीशान घर में रहती थी। शौहर की मौत हो चुकी थी और बच्चे अपनी ज़िंदगी में मस्त थे। बेटा जर्मनी में रहता था और बेटी ससुराल की हो कर रह गई थी। उन्हें अपनी बूढ़ी माँ से कोई सरोकार नहीं था। मगर जब उन्हें पैसों की ज़रूरत पेश आई तो उन्होंने अपना पैतृक घर बेचने का फ़ैसला किया और माँ को नानी के घर भेज दिया, जहाँ आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी न तो बिजली पहुँची थी और न ही शौचालय था।
बीबी की नियाज़
एक बेवा औरत को एक नवजात बच्चे को दूध पिलाने के काम पर रखा जाता है। बेवा का खुद का दूध पीता बच्चा है, लेकिन वह अपने बच्चे को अपना दूध न पिला कर उसे ऊपर का दूध पिलाती है कि मालकिन का बच्चा भूखा न रहे। दोनों बच्चे बड़े होते हैं तो पता चलता है कि बेवा का बेटा एबनॉर्मल है। अपने बच्चे को लेकर उसे किन-किन मुश्किलात का सामना करना पड़ता है, यही इस कहानी का बुनियादी ख़्याल है।
अँगूठी
यह कहानी एक पंडित को मुग़ल सरदार की तीमारदारी के बदले ईनाम में मिली एक अँगूठी के इर्दगिर्द घूमती है। वह अँगूठी कई प्रमुख घटनाओं का गवाह बनती ब्राह्मण परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुज़रती हुई उनके दामाद तक पहुँचती है। वह अँगूठी किसी तरह एक डाकू के हाथ लग जाती और फिर उसे एक पुलिस वाला उड़ा ले जाता है। पुलिस वाले के हाथ से निकलकर अँगूठी मंत्री के सचिव के हाथ में जा पहुँचती है और वहाँ से अँगूठी मंत्री ले लेता है। अब वह अँगूठी मंत्री के ऊँगली की शोभा थी, जो इस बात की गारंटी थी कि जिसके पास वह अँगूठी होगी, वह सारी कठिनाइयों से दूर रहेगा।
पार्सा बीबी का बघार
यह एक सामाजिक कहानी है। पारसा बीबी जब अपने घर में दाल का बघार लगाती थी तो सारे मोहल्ले को पता चल जाता था। पारसा बीबी थी तो बादशाह की बेटी, लेकिन ब्याही गई थी मुंशी के घर और यही उस घर की औरत की कहानी है।
आम सा एक दिन
यह एक मज़ाहिया कहानी है। रमज़ान के महीने में भी रोज़ा न रखने को लेकर बुआ लड़कों से हर वक़्त झगड़ा करती रहती है। रोज़ा रखने और नमाज़ पढ़ने वालों की हक़ीक़त को भी इस कहानी में पेश किया गया है।
एक थकी हुई औरत
यह प्रेम विवाह की कहानी है। अजय वसुंधरा के भाई का दोस्त है और वसुंधरा उससे मोहब्बत करने लगती है। अजय भी उससे मोहब्बत करता है और दोनों शादी के बंधन में बंध जाते हैं। एक साल बाद ही वसुंधरा को एहसास होता है कि उसने अजय से शादी कर के कितनी बड़ी ग़लती की है।
चुराया हुआ सुख
एक ऐसी औरत की कहानी है जिसका पति हमेशा बिज़नेस टूर पर शहर से बाहर रहता है। औरत सारा दिन घर में अकेली रहती है। सोसाइटी में उसकी मुलाक़ात एक ऐसे मर्द से होती है जिससे वह अपने पति की गै़र-मौजूदगी में थोड़ा-सा सुख चुरा लेती है।
थके पांव
यह एक ऐसी औरत की कहानी है जिसकी शादी किन्ही कारणों से समय रहते नहीं हो सकी और अब उसकी शादी की उम्र निकल चुकी है। इसलिए अब वह किसी भी सामाजिक समारोह में जाते हुए असहज महसूस करती है। शादियों, पार्टियों या फिर ऐसे ही किसी समारोह में विवाहिताओं की बातचीत और दूसरी गहमा-गहमियों से वह ऊब चुकी है। इसी बीच उसकी ज़िंदगी में एक ऐसा व्यक्ति आता है जिसकी पत्नी मर चुकी है और वह दो बेटियों का बाप है। वह व्यक्ति उससे शादी करना चाहता है। पहले तो वह उसे टालती रहती है। एक दिन अपनी एक सहेली से मुलाक़ात के बाद उसने उस व्यक्ति के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
नया साल मुबारक हो
नव वर्ष के अवसर पर होने वाली पार्टी की पृष्ठभूमि पर आधारित यह कहानी, कॉलेज के ज़माने के चार दोस्तों की दास्तान बयान करती है। सर्वत घर से ब्यूटी पार्लर के लिए निकली थी। रास्ते में उसे कॉलेज की दोस्त उर्मिला मिल जाती है। वह उसके साथ एक रेस्टोरेंट में जा बैठती है, जहाँ वे दोनों बीती हुई ज़िंदगी की घटनाओं को याद करती हैं। उसी क्रम में सर्वत को आनंद याद आता है, जिससे एक ज़माने में मोहब्बत थी। वह ऐसी मोहब्बत थी, जो पूरी होने के बाद भी अधूरी रह गई थी।
उनकी ईद
यह कहानी बाबरी विध्वंस के दौरान हुए दंगों में अपने प्रियजनों और अपनी संपत्ति को खो देने वाले एक मुस्लिम परिवार को आधार बनाकर लिखी गई है। मुंबई में उनके पास अपना एक अच्छा सा घर था और चलता हुआ कारोबार भी। उन्होंने अपने एक-दो रिश्तेदारों को भी अपने पास बुला लिया था। फिर शहर में दंगा भड़क उठा और देखते ही देखते सब कुछ तबाह हो गया। वे वापस गाँव लौट आए, मायूस और बदहाल। गाँव में यह उनकी दूसरी ईद थी, पर दिलों में पहली ईद से कहीं ज़्यादा दुख था।
शिकस्ता परों की उड़ान
यह एक ऐसी अधेड़ उम्र विधवा की कहानी है जो अपनी जवान बेटी के साथ रहती है लेकिन उसकी नारी सुलभ इच्छाएं और कामनाएं अब भी जवान हैं। इस उम्र में उसे बेटी की शादी की चिंता होनी चाहिए थी, लेकिन वह अपनी शादी के बारे में सोच रही थी। उसकी इस इच्छा को तब और पंख लग गए जब एक ख़ूबसूरत नौजवान उनके पड़ोस में आकर रहने लगा। उस महिला ने नौजवान से अपने संपर्क बढ़ाए और देखते ही देखते उसके सपने रंगीन होने लगे। मगर ये रंग स्थायी सिद्ध नहीं हुए जब उसे पता चला कि वह नौजवान उससे नहीं, बल्कि उसकी बेटी से शादी करना चाहता है।
काग़ज़ का रिश्ता
एक ऐसे व्यक्ति की कहानी, जिसने कभी भी अपनी पत्नी की क़द्र नहीं की। शादी के बाद से ही वह उससे दुखी रहता। हर समय मार-पीट करता रहता, घर से कई-कई दिनों के लिए ग़ायब हो जाता। फिर एक दिन वह एक चमार की लड़की को लेकर भाग गया और उसकी पत्नी को उसके भाई अपने घर ले आए। उन्होंने अपनी बहन पर उससे तलाक़़ लेने के लिए दबाव डाला, लेकिन वह राज़ी नहीं हुई। एक अर्से बाद पति ससुराल आया, अपनी पत्नी को लेने नहीं, पैसे माँगने के लिए। उसके सालों को जब उसके आने के उद्देश्य के बारे में पता चला तो उन्होंने उसे बहुत मारा। मार खाने के बाद जब पति वापस जाने लगा तो पत्नी ने पर्दे की ओट से उसे कुछ रूपये थमा दिए।
पायल
आई.ए.एस का इम्तिहान पास करने के बाद कंवल शर्मा एक ब्रिगेडियर उस्मानी अंकल के एक दोस्त के यहाँ घूमने जाता है। वहाँ उसे पता चलता है कि उनकी बेटी के रिश्ते के लिए उसे पसंद किया जा रहा है। परिवार बहुत ही सभ्य और शिक्षित है। लड़की भी बहुत सुंदर और सलीक़े वाली है, इसके बावजूद वह शादी से इंकार कर देता है।
गुड़िया
दस-बारह साल की उम्र की एक लड़की की कहानी है, जो अपने गाँव से शहर आती है। शहर में उसे एक घर में बच्चों की देखभाल की नौकरी मिल जाती है। उस घर में नौकरी करते हुए उसके बचपने की अधूरी ख़्वाहिशात फिर से उभरने लगती हैं। उन ख़्वाहिशात को पूरा करने के लिए वह जो क़दम उठाती है उससे उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है।
शनाख़्त
एक ऐसे ब्राह्मण ज़मींदार परिवार की कहानी, जिसने अपने एक बच्चे के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी एक मुस्लिम ख़िदमत-गुज़ार बाबू साईं को सौंप दी थी। हालाँकि उस परिवार ने बच्चे की देखभाल भी उसी तरह की थी, जैसे दूसरे बच्चों की हुई थी। परन्तु जैसे उस बच्चे को अन्न लगता ही नहीं था। सारा दिन कुछ न कुछ खाते रहने के बावजूद बच्चा एक दम सूखा काँटा सा दिखता था। बाबू साईं के संरक्षण में आने के बाद बच्चे के स्वास्थ्य में कुछ सुधार होने लगा था। बाबू साईं उसे गोश्त, मुर्ग़ा, यख़्नी सब कुछ खिलाता। अपने साथ तकिए पर भी ले जाता। बच्चे की ज़िद पर बाबू साईं ने उसे उर्दू भी सीखा दी थी। जब ब्राह्मण परिवार को इस बारे में पता चला तो उन्होंने यह कहते हुए बच्चे को वापस बुला लिया कि बाबु साईं तो उसे मुसलमान ही बना देगा।
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