ऐ काश
काश मैं एक बड़ी बच्ची होती। हुंह! बच्ची नहीं बल्कि बड़ी लड़की होती। अपिया हमेशा पूछती हैं। क्यों? उनको क्या मा’लूम कि मेरा कितना दिल चाहता है कि मैं भी एक बड़ी लड़की होती। मेरे भी बड़े-बड़े बाल होते। बड़े एहतिमाम से मैं भी चोटी डालती। रंग-बिरंगे पूनी बैंड्ज़ और क्लेचर लगाती। क्लेचर तो मेरे बालों में लगते ही नहीं। मैं भी भाभी बेगम की तरह बालों में गुलाब का फूल लगाती और किसी बच्चे को छूने भी न देती।
आह काश मैं भी बड़ी लड़कियों की तरह मेक-अप कर सकती। काश मेरे पास भी मेक-अप का बहुत सा सामान होता। मैं भी होंटों पर चॉकलेट के रंग की लिपस्टिक जमाती। आहा... वैसे स्ट्राबेरी कलर भी अच्छा लगता है। कभी वो भी लगाती। आँखों पर धनक के रंग लगाती (और लगाने के बाद अपिया का करारा सा थप्पड़ भी न खाती। ये राज़ की बात है। किसी को बताना नहीं है।) और सब कहते हमारी रबीया तो बिलकुल चीनी गुड़िया लग रही है और कामी भाई जान मुझे देख कर हंस-हंस कर लोट-पोट भी न होते रहते।
जाने मैं कब इतनी बड़ी होंगी कि मेरा भी बड़ा सा दुपट्टा आए। रंग-बिरंगा सा। मैं पूरा खोल कर ओढूँ। अब आपसे क्या छुपाना। जब ओढ़ा था तो धड़ाम से मुँह के बल गिरी थी।
आह मेरा भी एक चशमा होता। दादी अम्माँ की तरह। मैं पान बना कर खाती और मेरे दाँत भी न टूटते। मैं भी अम्माँ-जान की तरह ढेर सारे आलू-प्याज़ छीलती और काटती और मेरा हाथ भी ज़ख़्मी न होता। काश मैं भी बर्तन धो सकती और प्लेट और प्यालियाँ भी न टूटतीं।
काश मैं भी बड़ी सी झाड़ू लगाती। कोई मुझसे झाड़ू न छीनता कि, छोड़ो इसे तुम तोड़ दोगी। सब मुझे इतना बच्चा न समझते। मैं कब इतनी बड़ी हो जाऊँगी कि सब मुझसे बड़ों वाली बातें करें।
काश मैं भी खाना पका सकती और अब्बा जानी से ईनाम पाती और मैं ढेर सारी मिठाईयाँ बनाती और जी भर के खाती।
काश मैं भी बड़े-बड़े बुंदे पहनती। कभी-कभी तो झुमके भी।
काश मेरा भी बड़ा सा पर्स होता, मैं आंटियों की तरह उसको लटकाती।
काश मैं भी बड़ी लड़कियों की तरह दर्स देती और सब मेरी बात ग़ौर से सुनते।
काश मैं भी साईंस की मिस की तरह बड़ी हील वाली सैंडल पहनती।
काश मैं बड़ी होती। स्कूल में पढ़ाती और बच्चों पर रौब जमाती, किसी शरारती बच्चे को एक थप्पड़ भी लगाती और ढेर सारी कापियों पर टिक लगाती।
काश मैं भी बड़ी होती तो कहानियाँ लिखती और रिसाले में मेरा नाम आता।
और काश मैं बस बड़ी होती...
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