बादशाह चील
बच्चो ये उस चील की कहानी है जो कई दिन से एक बड़े से कबूतर ख़ाने के चारों तरफ़ मंडला रही थी और ताक में थी कि उड़ते कबूतर पर झपटा मारे और उसे ले जाए लेकिन कबूतर भी बहुत फुर्तीले, होशयार और तेज़ उड़ान थे। जब भी वो किसी को पकड़ने की कोशिश करती वो फुर्ती से बच कर निकल जाता। चील बहुत परेशान थी कि क्या करे और क्या न करे। आख़िर उसने सोचा कि कबूतर बहुत चालाक, फुर्तीले और तेज़ उड़ान हैं। कोई और चाल चलनी चाहिए। कोई ऐसी तरकीब करनी चाहिए कि वो आसानी से उसका शिकार बन सकें।
चील कई दिन तक सोचती रही। आख़िर उसकी समझ में एक तरकीब आई। वो कबूतरों के पास गई। कुछ देर इसी तरह बैठी रही और फिर प्यार से बोली, “भाईओ और बहनों मैं तुम्हारी तरह दो पैरों और दो परों वाला परिंदा हूँ। तुम भी आसमान पर उड़ सकते हो, मैं भी आसमान पर उड़ सकती हूँ। फ़र्क़ ये है कि मैं बड़ी हूँ और तुम छोटे हो। मैं ताक़तवर हूँ और तुम मेरे मुक़ाबले में कमज़ोर हो। मैं दूसरों का शिकार करती हूँ, तुम नहीं कर सकते। मैं बिल्ली को हमला कर के ज़ख़्मी कर सकती हूँ और उसे अपनी नोकीली चोंच और तेज़ पंजों से मार भी सकती हूँ। तुम ये नहीं कर सकते। तुम हर वक़्त दुश्मन की ज़द में रहते हो। मैं चाहती हूँ कि पूरी तरह तुम्हारी हिफ़ाज़त करूँ, ताकि तुम हंसी-ख़ुशी, आराम और इत्मीनान के साथ उसी तरह रह सको जिस तरह पहले ज़माने में रहते थे। आज़ादी तुम्हारा पैदाइशी हक़ है और आज़ादी की हिफ़ाज़त मेरा है।
मैं तुम्हारे लिए हर वक़्त परेशान रहती हूँ। तुम हर वक़्त बाहर के ख़तरे से डरे-सहमे रहते हो। मुझे अफ़सोस इस बात पर है कि तुम सब मुझसे डरते हो।
भाईओ और बहनो मैं ज़ुल्म के ख़िलाफ़ हूँ। इन्साफ़ और भाई-चारे की हामी हूँ। मैं चाहती हूँ कि इन्साफ़ की हुकूमत क़ायम हो। दुश्मन का मुँह फेर दिया जाए और तुम सब हर ख़ौफ़ से आज़ाद इत्मीनान और सुकून की ज़िंदगी बसर कर सको। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे मेरे दरमयान एक समझौता हो। हम सब अह्द करें कि हम मिल कर अम्न के साथ रहेंगे। मिल कर दुश्मन का मुक़ाबला करेंगे और आज़ादी की ज़िंदगी बसर करेंगे, लेकिन ये उसी वक़्त हो सकता है जब कि तुम दिल-ओ-जान से मुझे अपना बादशाह मान लो।
जब तुम मुझे अपना बादशाह मान लोगे और मुझे ही हुक़ूक़ और पूरा इख़्तियार दे दोगे तो फिर तुम्हारी हिफ़ाज़त और तुम्हारी आज़ादी पूरी तरह मेरी ज़िम्मेदारी होगी। तुम अभी समझ नहीं सकते कि फिर तुम कितने आज़ाद और कितने ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम रहोगे। इसी के साथ आज़ादी चैन और सुकून की नई ज़िंदगी होगी।”
चील रोज़ वहाँ आती और बार-बार बड़े प्यार-मुहब्बत से उन बातों को तरह-तरह से दुहराती। रफ़्ता-रफ़्ता कबूतर उसकी अच्छी और मीठी बातों पर यक़ीन करने लगे
एक दिन कबूतरों ने आपस में बहुत देर मश्वरा किया और तय कर के उसे अपना बादशाह मान लिया।
इसके दो दिन बाद तख़्त-नशीनी की बड़ी शानदार तक़रीब हुई। चील ने बड़ी शान से हलफ़ उठाया और सब कबूतरों की आज़ादी, हिफ़ाज़त और हर एक से इन्साफ़ करने की क़सम खाई। जवाब में कबूतरों ने पूरी तरह हुक्म मानने और बादशाह चील से पूरी तरह वफ़ादार रहने की दिल से क़सम खाई।
बच्चो! फिर ये हुआ कि कुछ दिनों तक चील कबूतर ख़ाने की तरफ़ उसी तरह आती रही और उनकी ख़ूब देख-भाल करती रही। एक दिन बादशाह चील ने एक बिल्ले को वहाँ देखा तो उस पर अपने साथियों के साथ ऐसा ज़बरदस्त हमला किया कि बिल्ला डर कर भाग गया।
चील अक्सर अपनी मीठी-मीठी बातों से कबूतरों को लुभाती और उन्हें हिफ़ाज़त और आज़ादी का एहसास दिलाती।
इसी तरह कुछ वक़्त और गुज़र गया। कबूतर अब बग़ैर डरे उसके पास चले जाते। वो सब आज़ादी और हिफ़ाज़त के ख़्याल से बहुत ख़ुश और मुत्मइन थे।
एक सुबह के वक़्त जब कबूतर दाना चुग रहे थे तो चील उनके पास आई। वो कमज़ोर दिखाई दे रही थी। मा’लूम होता था जैसे वो बीमार है। कुछ देर वो चुप-चाप बैठी रही और फिर शाहाना आवाज़ में बोली, “भाईओ और बहनो मैं तुम्हारी हुकमरान हूँ।
तुमने सोच समझ कर मुझे अपना बादशाह बनाया है। मैं तुम्हारी हिफ़ाज़त करती हूँ और तुम चैन और अम्न से रहते हो। तुम जानते हो कि मेरी भी कुछ ज़रूरतें हैं। ये मेरा शाही इख़्तियार है कि जब मेरा जी चाहे मैं अपनी मर्ज़ी से तुम में से एक को पकड़ूँ और अपने पेट की आग बुझाऊँ। मैं आख़िर कब तक बग़ैर खाए-पीए ज़िंदा रह सकती हूँ? मैं कब तक तुम्हारी ख़िदमत और तुम्हारी हिफ़ाज़त कर सकती हूँ? ये सिर्फ़ मेरा ही हक़ नहीं है कि मैं तुम में से जिसको चाहूँ पकड़ूँ और खा जाऊँ, बल्कि ये मेरे सारे शाही ख़ानदान का हक़ है। आख़िर वो भी तो मेरे साथ मिल कर तुम्हारी आज़ादी की हिफ़ाज़त करते हैं।
उस दिन अगर उस बड़े से बिल्ले पर मैं और मेरे ख़ानदान वाले मिल कर हमला न करते तो वो बिल्ला ना मा’लूम तुम में से कितनों को खा जाता और कितनों को ज़ख़्मी कर देता।”
ये कह कर बादशाह चील क़रीब आई और एक मोटे से कबूतर को पंजों में दबोच कर ले गई।
सारे कबूतर मुँह देखते रह गए।
अब बादशाह चील और उसके ख़ानदान वाले रोज़ आते और अपनी पसंद के कबूतर को पंजों में दबोच कर ले जाते।
इस तबाही से कबूतर अब हर वक़्त परेशान और ख़ौफ़-ज़दा रहने लगे। उनका चैन और सुकून मिट गया था। उनकी आज़ादी ख़त्म हो गई। वो अब ख़ुद को पहले से भी ज़्यादा ग़ैर-महफ़ूज़ समझने लगे और कहने लगे हमारी बेवक़ूफ़ी की यही सज़ा है। आख़िर हमने चील को अपना बादशाह क्यों बनाया था? अब क्या हो सकता है।
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