चालाक चूहे की सरगुज़िश्त
जंगल में घने दरख़्तों के दरमयान छोटे-बड़े बे-शुमार टीले थे। उन पर झाड़ियाँ उग आई थीं। उन टीलों पर कुछ दिनों से हलचल दिखाई दे रही थी। वो जंगली चूहों की एक टोली थी जो उनमें अपने बिल बना रही थी। चंद ही दिनों में उन्होंने तमाम टीलों को खोद डाला। उनमें जा-ब-जा सुराख़ बने नज़र आ रहे थे और वो सब आपस में मिले हुए थे। चूहे मज़े से वहाँ रहने लगे।
कुछ ही दिनों में उनकी ता'दाद बहुत बढ़ गई। जब देखो वो टीलों पर भागते-दौड़ते और खेलते नज़र आते थे। जब इतना आसान शिकार इतने क़रीब मौजूद हो तो शिकारी जानवर ज़रूर मुतवज्जा हो जाते हैं, चुनाँचे बहुत से जानवर उनकी ताक में लग गए।
जंगली चूहे बड़े और मोटे-ताज़े होते हैं लिहाज़ा कुत्ते अक्सर उनकी ज़ियाफ़त उड़ाने वहाँ आ निकलते। कुछ दूर एक पहाड़ी पर चीलों का बसेरा था, वो भी वहाँ ग़ोते खाते नज़र आते थे। साँपों को भी अब दूर जाने की ज़रूरत नहीं थी। वो भी रेंगते, बल खाते, वहाँ मौजूद होते।
एक चालाक लोमड़ी भी वहाँ आ निकली थी, बल्कि उसने तो वहीं डेरा डाल लिया। जब देखो वो अपना लंबा मुँह बिलों में घुसेड़े चूहे पकडती नज़र आती। वो ज़्यादा से ज़्यादा शिकार करती और उन्हें मुख़्तलिफ़ जगहों पर छिपा देती। ये उसकी सर्दी के मौसम के लिए मंसूबा-बंदी थी जब शिकार ब-मुश्किल मिल पाता था।
तमाम चूहे इस सूरत-ए-हाल से परेशान थे, लेकिन उनके पास इसका कोई हल नहीं था। उन चूहों में एक चूहा बहुत होशयार और नट-खट था। वो हमेशा नित नए काम करना पसंद करता था। यहाँ तक कि उसे दास्तान-ए-मूश (चूहों की दास्तान) भी ज़बानी याद थी। जिसे सुना कर वो दूसरे बड़े-बूढ़े चूहों को हैरान कर दिया करता था। दास्तान-ए-मूश में वो नए और पुराने क़िस्से मिलते थे जो वक़तन-फ़-वक़तन चूहों की क़ौम के साथ पेश आते रहे थे, लेकिन उन दिनों वो भी परेशान रहता।
एक दिन वो ख़ुराक की तलाश में बाहर घूम रहा था कि उसे ख़तरे का एहसास हुआ, उसने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई, लेकिन कोई शिकारी जानवर नज़र नहीं आया, फिर अचानक ऊपर किसी चीज़ का साया महसूस हुआ। वो बिजली की तेमी से दौड़ा और क़रीब तरीन बिल में जा घुसा। वो चील थी जो मिट्टी उड़ाती उसके बिल पर आ बैठी थी। चूहे का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन वो महफ़ूज़ था और एक दफ़ा की बात है कि लोमड़ी उसके पीछे लग गई। वो तेज़ी से भागा। बिल दूर था और लोमड़ी उससे तेज़ दौड़ती थी, उसे अपना ख़ातमा होता नज़र आ रहा था, लेकिन अचानक कहीं से एक दूसरा चूहा भागता हुआ उनके दरमयान आ गया। लोमड़ी दूर के शिकार को छोड़ कर क़रीब वाले पर झपट पड़ी और इस तरह उसकी जान बची। अब वो बहुत एहतियात से काम लेता, बिला-ज़रूरत कभी बाहर नहीं निकलता लेकिन आख़िर कब तक... भूक से मजबूर हो कर तो बाहर जाना ही पड़ता था।
एक दिन वो ख़ुराक की तलाश में निकला तो क़रीब ही उसे एक मरा हुआ टिड्डा पड़ा मिल गया। उसने जल्दी से टिड्डे को बल में पहुँचाया फिर उसे लालच हुआ कि इस वक़्त कोई शिकारी जानवर क़रीब नहीं है और भी ख़ुराक तलाश कर लेता हूँ। वो दुबारा गया और दूर निकल गया। उसे खाने की कोई चीज़ तो नहीं मिली अलबत्ता एक मरा हुआ सेहा पड़ा हुआ नज़र आया। उसका जिस्म गल चुका था लेकिन खाल सूख कर अलग पड़ी थी।
अचानक चूहे के ज़ह्न में एक तरकीब आई। उसने खाल उठाई, उस पर काँटे मौजूद थे। चूहे ने उसे अपने ऊपर डाला वो एक जैकेट की तरह उसके जिस्म पर फिट बैठ गई। उसने चल कर देखा और तसव्वुर मैं ख़ुद को काँटों वाला सेहा महसूस किया। वो मुस्कुराने लगा...
उसके हाथ एक ज़बरदस्त चीज़ लग गई थी। वो उसे अपने बिल में ले आया। सेहा के जिस्म पर काँटे होते हैं। उसे काँटों वाला चूहा भी कहा जाता है। शिकारी जानवर कोशिश के बावजूद उसको शिकार नहीं कर पाते। क़ुदरत ने उसे अपनी हिफ़ाज़त के लिए एक अनमोल हथियार दे रखा है। यहाँ तक कि शेर और चीते भी उससे दूर रहते हैं।
अब चालाक चूहा जब भी बाहर निकलता वो खाल पहन लेता और मज़े से घूमता रहता। शिकारी जानवर उस पर तवज्जो न देते, लेकिन एक दिन लोमड़ी ने उसे चूहा समझा और उसके पीछे तक आई, क़रीब आ कर वो रुक गई। वो उसके इर्द-गिर्द घूम रही थी। चूहा डर रहा था कि कहीं चालाक लोमड़ी उसे पहचान न ले, लेकिन फिर वो आगे बढ़ गई।
दिन यूँ ही गुज़रते रहे। चूहे के साथी एक-एक कर के शिकार होते गए अब उनकी ता'दाद बहुत कम रह गई थी। लेकिन शिकारी जानवर ब-दस्तूर वहाँ मौजूद थे। ख़तरा बढ़ता जा रहा था आख़िर चालाक चूहे ने फ़ैसला किया कि उसे अब ये इलाक़ा छोड़ कर किसी और तरफ़ निकल जाना चाहिए।
एक दिन उसने अपनी काँटों भरी ज़रदा बक्तर पहनी जो उसे बहुत दिनों से शिकारियों से बचाती आई थी और रवाना हो गया। वो पगडंडी पर आहिस्ता-आहिस्ता चला जा रहा था कि अचानक उसके सामने जंगल का बादशाह शेर चला आया। उसे देख कर चूहे की तो जान ही निकल गई। शेर उसको देख कर ठिठक कर रुक गया। वो उसे ग़ौर से देख रहा था उसकी मोटी दुम बल खा रही थी। दोनों पगडंडी पर आमने-सामने खड़े थे। शेर चूहे के बहुत क़रीब चला आया था। वो हल्के-हल्के ग़ुर्रा रहा था। एक दफ़ा तो उसने पंजा हवा में घुमाया जो चूहे की आँखों के आगे से गुज़रा।
चूहे की ख़ौफ़ से इतनी बुरी हालत थी कि वो शेर के रास्ते पर हटना भी भूल चुका था। थोड़ी देर तक दोनों उसी तरह खड़े रहे। फिर शेर ने इधर-उधर देखा और ग़ैर-महसूस अंदाज़ में चूहे के रास्ते से हट गया। उसने इस बात का ख़्याल रखा था कि आस-पास कोई जानवर उन्हें देख तो नहीं रहा। वो दुम हिलाता हुआ झाड़ियों में जा घुसा और चूहा सेहा के भेस में अपने रास्ते पर हो लिया।
जंगल की हज़ारों साल पुरानी तारीख़ में ऐसा पहली बार हुआ था कि एक शेर ने चूहे के लिए रास्ता छोड़ दिया था। चूहा चलता रहा... आख़िर ऐसे इलाक़े में जा पहुँचा जहाँ शिकारी जानवर नहीं थे। उसने अपनी ज़िरह बक्तर उतार फेंकी। जल्द ही उसे कुछ चूहे नज़र आ गए। चालाक चूहा उनसे जा मिला और एक नई ज़िंदगी का आग़ाज़ कर दिया। यूँ एक मा'मूली से चूहे ने अपनी दानाई और हिम्मत से काम ले कर बड़े शिकारी जानवरों को धोका दिया और अपनी ज़िंदगी बचाने में कामयाब रहा।
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