दो मोतियों का तोहफ़ा
आज नवेद की सालगिरह थी, लेकिन वो शख़्त बेचैन था। मेहमानों की आमद शुरू हो चुकी थी। उस के वालिद जज इम्तियाज़ अली मेहमानों के आगे बढ़ बढ़कर इस्तिक़बाल कर रहे थे। उन्होंने बेटे से परेशानी की वजह पूछी तो उसने बताया कि उसका अज़ीज़ तरीन दोस्त अभी तक नहीं आया।
जज साहब का मुँह बन गया। वो अपने बेटे के दोस्त को अच्छी तरह जानते थे। वो एक ग़रीब बुढ़िया का बेटा था, जो लोगों के घरों में मेहनत मज़दूरी कर के मुश्किल से अपना और अपने बेटे का पेट पालती थी। वो उनके बेटे का क्लासफ़ेलो था और बेहतरीन दोस्त भी। जज साहब इस दोस्ती को अच्छी तरह से नहीं देखते थे।
नवेद बार-बार दरवाज़े की तरफ़ देख रहा था। उसने कल माजिद को ठीक वक़्त पर पहुंच जाने की ख़ूब अच्छी तरह ताकीद की थी और उसने वा’दा भी कर लिया था।
क़ीमती कपड़ों में मलबूस जज साहब के दोस्त और अज़ीज़ अपने बच्चों और बीवीयों के साथ आ रहे थे। उनमें से हर एक के हाथ में तोहफ़े का पैकेट था, जो वो अंदर आते ही नवेद के हाथ में दे रहे थे। नवेद बे-ख़याली के आलम में उनके तहाइफ़ पकड़ रहा था। उसका दिल घबरा रहा था वो सोच रहा था
आख़िर माजिद अब तक क्यों नहीं आया। कहीं उसकी माँ की तबीयत ख़राब ना हो गई हो। उसकी माँ अक्सर बीमार रहती थी। या फिर वो ख़ुद ना बीमार हो गया हो। हो सकता है कि वो इधर आ रहा हो--- और ख़ुदा-ना-ख़्वासता किसी हादिसे में चोट ना खा बैठा हो।
ग़रज़ इस किस्म के ख़्यालात उसके ज़ेहन में आते रहे। जब भी कोई दरवाज़े में दाख़िल होता, उस की आँखों में उम्मीद की चमक नज़ड़ आती लेकिन फिर माजिद को दरवाज़े में ना देखकर वो चमक ग़ायब हो जाती, उस का मुँह लटक जाता
आख़िर जब उस से रहा ना गया तो वो जज साहब के पास गया और घबराए हुए लहजे में उनसे बोलाः
‘‘अब्बा जान ना जाने क्यों नहीं आया। मैं ज़रा जाकर उसे ले आऊँ।’’
माजिद--- माजिद--- माजिद--- आख़िर उस भूके नंगे लड़के के ना आने से कौन सा फ़र्क़ पड़ जाएगा, और फिर तुम इतने मेहमानों को छोड़कर उस दो टके के छोकरे को लेने जाओगे। मेहमान क्या ख़्याल करेंगे बेटा। वो ना आएगा तो कौन सी क़ियामत आजाएगी जज साहब ने नाराज़ हो कर कहा।
अब वो उन्हें कैसे बताता कि माजिद का ना आना उस के लिए क़ियामत आने के बराबर ही था। उसे अपने दोस्त से बहुत मुहब्बत थी।
वक़्त गुज़रता चला गया। सब मेहमान आ चुके थे और इंतिज़ार कर रहे थे कि कब नवेद केक काटे और पार्टी शुरू हो। आख़िर जज साहब झुँझला उठे। उन्होंने नवेद से सख़्त लहजे में कहाः
‘‘चलो नवेद केक काटो। सब लोग इंतिज़ार कर रहे हैं।’’
नवेद मजबूर हो गया। उसने आख़िरी बार दरवाज़े की तरफ़ देखा, और फिर बिलकुल मायूस हो गया। उसकी आँखों में दो आँसू उमड आए जो गालों पर लुढ़क कर ज़मीन पर गिर गए। उसने छुरी उठाई और केक काट कर मोमबत्तियां बुझाने लगा। सब लोग तालियाँ बजा बजा कर उसे मुबारकबाद देने लगे, लेकिन वो ख़ामोश था। उसके चेहरे पर ख़ुशी की हल्की सी झलक भी नहीं थी।
सारी रात वो सो ना सका। सुब्ह हुई तो नाश्ता कर के स्कूल पहुंचा। उसने उस दरख़्त के नीचे देखा, जहां वो स्कूल लगने से पहला मिला करते थे।
माजिद दरख़्त के नीचे मौजूद था। इस के क़दम उस की तरफ़ उठते चले गए। माजिद के पास पहुंच कर वो रुक गया और ख़ामोश खड़ा हो गया। माजिद ने उस के क़दमों की आहट सुनकर उस की तरफ़ देखा और उसे अपनी तरफ़ देखते हुए ना पाकर तड़प उठा।
‘‘मुझसे नाराज़ हो---' इस के मुँह से निकला
’’हाँ।' नवेद इस से ज़्यादा कुछ ना कह सका
’’मैं हूँ भी इसी काबुल। एक ग़रीब बूढ़िया के बेटे को हक़ भी किया है कि एक अमीर बाप के अमीर बेटे को दोस्त बनाए।’’
‘‘आख़िर ऐसी क्या बात थी कि तुम सालगिरा में नहीं आए। मैंने तुम्हारा कितना इंतिज़ार किया। मुझे बताओ माजिद। तुमने ऐसा क्यों किया। मैं सारी रात जागता रहा हूँ, तुमने मुझे इतनी ख़ौफ़नाक सज़ा क्यों दी। तुमने मुझ पर ये ज़ुल्म क्यों किया।’’
जवाब में माजिद कुछ भी ना बोला तो वो बेचैन हो गया। वो घुटनों के बल उस के पास बैठ गया
’’क्या माँ बीमार थी। इस के ईलाज के लिए पैसे नहीं हैं।'
‘‘नहीं। ऐसी कोई बात नहीं।’’
‘‘तो फिर तुम ज़रूर इस वजह से नहीं आए होगे कि अब्बा जान तुम्हें पसंद नहीं करते।’’
‘‘नहीं, ये बात नहीं है। मैं जानता हूँ, तुम्हारे वालिद साहब मेरी और तुम्हारी दोस्ती को अच्छा नहीं समझते। लेकिन तुम तो मुझे पसंद करते हो। फिर भला में उनकी वजह से क्यों रुकता। मैं तो इस से पहले भी कई बार तुम्हारे हाँ जा चुका हूँ।
‘‘तो फिर ---- आख़िर क्या वजह थी। ख़ुदा के लिए मुझे बताओ।’’
‘‘दरअसल मेरे पास तुम्हें----’’ वो फिर रुक गया
अब जो नवेद ने इस के चेहरे की तरफ़ देखा तो वो घबरा गया। नवेद की आँखों में आँसू थे। देखते ही देखते आँसू उस के गालों पर लुढ़क आए। नवेद ने जल्दी से जेब में से रूमाल निकाला और इस से पहले कि आँसू ज़मीन पर गिरते, उसने उन्हें रूमाल में ले लिया।
‘‘अरे अरे, तुम तो रोने लगे। देखो अगर मेरी किसी बात से तुम्हें दुख पहुंचा है तो मुझे माफ़ कर दो। चलो मैं नहीं पूछता, सालगिरा में ना आने की वो ----- जाने दो।’’
नहीं नवेद --- मैं तुम्हें बताता हूँ--- दरअसल मेरे पास तुम्हें देने के लिए कोई तोहफ़ा नहीं था।’’
‘‘ओह--- उफ़ ज़ालिम --- तुमने ये क्या-क्या --- क्या तुम सिर्फ़ इस वजह से नहीं आए--- पागल हो तुम --- अच्छे ख़ासे पागल --- बेवक़ूफ़ भला दोस्त किसी दोस्त के तोहफ़े का भूका होता है। उस के लिए तो बस दोस्त ही सब कुछ होता है और फिर तोहफ़ा तो तुमने मुझे उस वक़्त भी दे गया है।’’ नवेद मुस्कुरा कर बोला।
‘‘तोहफ़ा--- किया मतलब--- कैसा तोहफ़ा---’’ माजिद ने हैरान हो कर कहा
’’हाँ ये देखो--- दो मोतियों का तोहफ़ा--- जो तुम्हारी आँखों से निकले --- ये मैंने रूमाल में ले लिए हैं--- इनसे अच्छा तोहफ़ा भी भला कोई हो सकता है--- पागल कहीं का --- आ मेरे गले से लग जा।’’ नवेद ने बेताबी से कहा
माजिद बे-इख़्तियार हो कर उठा, और अपने दोस्त नवेद के गले लग गया
दोनों दोस्त बहुत ख़ुश थे।
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