आसमान पर बादल छाए हुए थे। कभी-कभी, कोई इक्का-दुक्का, बूँद भी पड़ जाती। गग्गू मियाँ घबराए हुए कमरे में आए और अम्मी से बोले, अम्मी जान! छतरी कहाँ है? बरामदे में रखी थी।
अम्मी बोलीं, बेटे, छतरी तो फ़रीदा ले गई है। कह रही थी, शकीला के घर जा रही हूँ। थोड़ी देर में आ जाऊँगी।
गग्गू मियाँ उछल कर बोले, हाय ग़ज़ब! अब क्या होगा? वो छतरी खोलेगी तो तू मैं जाकर उसे पकड़ता हूँ। अभी रास्ते ही में होगी।
अम्मी रोकती ही रह गईं और गग्गू मियाँ घर से निकल, ये जा और वो जा। अभी थोड़ी दूर गए थे कि रास्ते में डाकिया मिला। गग्गू मियाँ रुक गए और बोले, क्यों हाजी साहब! आपने मेरी बहन फ़र्रो को देखा है? अभी-अभी उधर को गई है।
डाकिया बोला, अरे मियाँ बरख़ुर्दार! ये कहाँ की तमीज़ है? न सलाम, न दुआ। झट से सवाल कर दिया।
गग्गू मियाँ बोले, सलाम अलैकुम! सलाम अलैकुम!
अब ये बताइए कि आपने मेरी बहन को देखा है और अगर देखा है तो क्या उसके हाथ में छतरी थी? अगर थी तो खुली हुई थी पाबंद थी?
डाकिया बोला, अरे रे-रे! तुमने तो एक ही साँस में इतनी सारी बातें पूछ डालीं। ख़ैर तो है। इतने घबराए हुए क्यों हो?
गग्गू मियाँ ने कहा, ये फिर बताउँगा। पहले आप मेरी बातों का जवाब दीजिए।
डाकिया बोला, फ़रीदा बीबी को मैंने अभी-अभी देखा था। उनके हाथ में छतरी थी और वो बंद थी।
शुक्रिया। शुक्रिया। बहुत-बहुत शुक्रिया!
गग्गू मियाँ ने कहा और बे तहाशा भागे।
सड़क के पार एक गली थी। गली के नुक्कड़ पर ख़ैर कुंजड़े की दुकान थी। ख़ैरू ने गग्गू मियाँ को देखा तो आवाज़ दी, अरे मियाँ! कहाँ भागे जा रहे हो?
गग्गू मियाँ ने कहा, ये फिर बताउँगा। पहले आप ये बताइए कि आपने मेरी बहन फ़र्रो को देखा है?
हाँ-हाँ ख़ैरू बोला। अभी-अभी वो मुझसे एक आने की गाजरें ले गई हैं। कहती थीं, अपनी सहेली शकीला की साथ खाऊँगी।
शुक्रिया, शुक्रिया गग्गू मियाँ बोले। अब ये बताइए कि उनके हाथ में छतरी थी? अगर थी तो खुली थी या बंद?
ख़ैरू बोला, छतरी? हाँ-हाँ! छतरी थी तो, पर मियाँ, ये याद नहीं कि खुली थी या बंद थी।
गग्गू मियाँ ने ख़ैरू को सलाम किया और गली में घुस गए। एका-एकी, एक साइकिल सवार आया और गग्गू मियाँ को देख कर ठहर गया।
ये गग्गू मियाँ के ख़ालू जान थे। ख़ालू जान ने पूछा, अरे! गग्गू मियाँ! कहाँ अब्बा जान भी ख़ैरियत से हैं। अम्मी जान भी ख़ैरियत से हैं। मैं भी ख़ैरियत से हूँ। फ़रीदा का पता नहीं। वो मुझे मिलती ही नहीं।
ख़ालू जान बोले, फ़रीदा तो अभी-अभी मुझे मिली थी। शकीला के घर जा रही थी।
अच्छा! गग्गू मियाँ उछल कर बोले, ये बताइए कि उसके हाथ में छतरी थी? अगर थी तो खुली थी या बंद?
ख़ालू जान ने कहा, उसके हाथ में छतरी थी और वो शायद बंद थी। आख़िर बात क्या है?
ये फिर बताउँगा। सलाम अलैकुम गग्गू मियाँ ने कहा और बग-टुट भागे।
उस गली में एक और गली थी और उस गली के आख़िर में शकीला का घर था। गग्गू मियाँ गली में घुसे ही थे कि फ़रीदा दिखाई दी। वो शकीला के दरवाज़े के क़रीब पहुँच गई थी।
गग्गू मियाँ ने ज़ोर से कहा, फ़र्रो! फ़र्रो! ठहरो! छतरी मत खोलना।
फ़रीदा ठहर गई। गग्गू मियाँ भागते हुए उसके पास पहुँचे और हाँपते हुए बोले हाय! उफ़! छतरी खोली तो नहीं थी तुमने?
नहीं तो। फ़रीदा बोली। क्यों? क्या बात है?
गग्गू मियाँ ने कहा, इसमें बिल-बिल बिल्ली का बच्चा है।
बिल्ली का बच्चा? फ़रीदा ने हैरत से कहा और छतरी खोली तो सच-मुच बिल्ली का एक नन्हा-मुन्ना बच्चा कूद कर बाहर निकला और गग्गू मियाँ की टाँगों से चिमट कर ख़र-ख़र करने लगा।
फ़रीदा बोली, ऐ-है! मैं भी तो कहूँ कि छतरी इतनी भारी क्यों है! मगर ये छतरी में घुस कैसे गया?
गग्गू मियाँ बोले मैंने रखा था उसे। आज सफ़ेद बिल्ली ने छत पर बच्चे दिए थे। दूसरे बच्चे तो वो अपने साथ ले गई। ये बेचारा वहीं रह गया। उसे एक मोटा सा बिल्ला मार रहा था। मैंने बड़ी मुश्किल से बचाया और छतरी में छिपा दिया। जब इसकी माँ आएगी तो उसे दे दूँगा।
फ़रीदा बोली, हा हा! ये भी ख़ूब रही। इसे अंदर ले चलो। दूध पिलाएंगे। भूका है बेचारा।
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