प्यारे बच्चो, दूर आसमान से परे एक परियों का देस था। वहाँ ऊँचे-ऊँचे मीनारों वाले एक महल में एक बहुत ख़ूबसूरत शहज़ादा अकेला रहता था।
एक दिन वो तन्हा बैठे-बैठे ऊब गया। उसने सोचा क्यों न वो अपने महल के तहख़ाने में देखे कि वहाँ आख़िर है क्या।
वो एक मश'अल ले कर वहाँ पहुँचा। उसे सिवा अंधेरे के कुछ भी न मिला। वो बहुत उदास हो गया। आँखों में आँसू भर के लौट ही रहा था कि अचानक उसकी निगाह एक काँच की गुड़िया पर पड़ी। उसने झटपट उसे उठा लिया और ख़ुशी-ख़ुशी महल में लौट आया। तन्हा शहज़ादा अब दिन रात उसी गुड़िया के साथ रहता। उससे लंबी-लंबी बातें करता। रात को उसी के ख़्वाब देखता।
मगर एक दिन वो अचानक उदास हो गया। उसे कुछ ख़्याल ही ऐसा आया, वो क्या करता। हुआ ये कि वो अपनी प्यारी गुड़िया से बैठा बातें कर रहा था कि उसे महसूस हुआ, बे-चारी बे-जान गुड़िया न उसकी बात समझती है, न उसकी किसी बात का जवाब ही दे सकती है। वो बहुत ख़ूबसूरत तो है लेकिन उसकी तरह साँस नहीं ले सकती। ना ही पलकें झपका सकती है। रोते-रोते वो निढाल हो गया। न उसने कुछ खाया, न एक लम्हे के लिए सोया। ये सिलसिला कई रोज़ तक जारी रहा। जानते हो बच्चो फिर क्या हुआ...
एक भोली-भाली परी से शहज़ादे का ग़म देखा न गया। वो एक रात चुपके से महल में आ गई और अपनी जादू की छड़ी से गुड़िया को छू कर आहिस्ता से बोली, “प्यारी ज़रा मुस्कुरा तो दो।” बस फिर क्या था। गुड़िया ने हौले से पलकें झपकाईं और मुस्कुरा दी।
शहज़ादे ने देखा तो दौड़ कर परी का हाथ चूम लिया। और बोला, “कितनी अच्छी हो तुम लाल परी अब मैं कभी उदास न होउंगा। मेरी काँच की गुड़िया हमेशा-हमेशा मेरे साथ रहेगी। लाल परी हंस कर वहाँ से ग़ायब हो गई। गुड़िया ने मुस्कुरा कर अपने शहज़ादे को सलाम किया और एक प्यारा सा गीत गा कर नाचने लगी। शहज़ादा बहुत ख़ुश हुआ। ताली बजा-बजा कर अपनी गुड़िया की ता’रीफ़ करने लगा। गुड़िया हंस पड़ी और बोली, “तुम बहुत दिन के भूके हो। पहले कुछ खा लो, फिर मुझे अपना महल दिखाओ।”
उस दिन से आज तक वो शहज़ादा अपनी गुड़िया के साथ वहीं रहता है। आसमान से बड़े ऊँचे-ऊँचे मिनारों वाले महल में कभी रात के सन्नाटे में अचानक उनकी हंसी ज़मीन पर भी सुनाई देती है। तुम भी कभी ध्यान से सुनना।
(पयाम-ए-तालीम, नवंबर78)
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