Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

ख़ाला की परेशानियाँ

सुमैरा अमीर

ख़ाला की परेशानियाँ

सुमैरा अमीर

MORE BYसुमैरा अमीर

    “अरे ये कमबख़्त कव्वा कब से दीवार पर बैठा काएँ पे काएँ करे जा रहा है। तुझे नज़र नहीं रहा था, उड़ा इसे। कान खा गया ये तो, कहाँ मर गई रुख़साना? फिर किताबों में सर खपाए बैठी है किसी कोने में, एक तो इस लड़की को चैन नहीं आता।”

    “क्या हुआ फुप्फो जान?” रुख़साना कमरे से किताब हाथ में लिए निकली...

    “मैं कहती हूँ मार इस कव्वे को एक जूती रुख के।” ख़ाला सकीना ने ‘रख के’ पर ज़ोर देते हुए कहा…

    “क्यों फुप्फो इस बेज़बान पर ज़ुल्म कर रही हैं?”

    “अरे ज़ुल्म तो ये कर रहा है। मेहमानों की आमद का चीख़-चीख़ कर ऐलान कर रहा है। महंगाई का इसे पता नहीं कि आज-कल तो खाने के लाले पड़े हैं और ये मनहूस मेहमानों का ऐलान कर रहा है।” ख़ाला भी अपने नाम की एक थीं।

    “अच्छा फुप्फो, आपको कव्वों की ज़बान आती है?” रुख़साना ने हैरत से पूछा।

    “तुझे पता नहीं कि जब घर में कव्वा चीख़े तो मेहमान आते हैं?” ख़ाला ने उससे भी ज़्यादा हैरत का मुज़ाहरा किया।

    “ओहो फुप्फो ये सब बकवास होता है। ऐसे लोगों को तवह्हुम-परस्त कहते हैं और अगर इत्तिफ़ाक़ से मेहमान भी जाए तो क्या हुआ? मेहमान तो अल्लाह की रहमत होते हैं और रही खाने-पीने और महंगाई की बात तो मेहमान अपना रिज़्क़ ख़ुद लाता है। तो फिर आप क्यों टेन्शन ले रही हैं?”

    “काहे को टेन्शन लूँ, आज तक कौन सा मेहमान है जो ख़ुद अपना खाना लाया है साथ। जिसे देखो ख़ाली हाथ ही चला आता है।” ख़ाला कहाँ पीछे रहने वाली थी...

    “ओफ़्फ़ो फुप्फो मैं आपको कैसे समझाऊँ... अल्लाह-तआला अपनी क़ुदरत से रिज़्क़ में इज़ाफ़ा कर देता है और मेहमान की आमद पर तो इन्सान को ख़ुश होना चाहिए क्यों कि इससे तो अल्लाह-तआला भी ख़ुश होते हैं। आप ख़ुद सोचें कि क्या हमें ख़ुश नहीं होना चाहिए।

    वैसे फुप्फो कोई मेहमान नहीं रहा। बे-फ़िक्र हो जाएँ।” रुख़साना अपनी फुप्फो को तसल्ली देकर कमरे की तरफ़ चली गई और ख़ाला उसे जाता देखती रह गईं।

    रुख़साना अपनी फुप्फो के साथ रहती थी जो ख़ुद भी अकेली थीं। सिलाईयाँ कर के गुज़ारा होता था। रुख़साना पहले यतीम थी, कुछ सालों बाद मिस्कीन भी हो गई तो सकीना ख़ाला ने अपनी भतीजी को अपने पास रख लिया और वो अपने इस फ़ैसले पर बहुत ख़ुश भी थीं।

    सुबह ख़ाला सब्ज़ी लेने बाज़ार गईं। सख़्त गर्मी में पहले ही दिमाग़ ख़राब हो रहा था, ऊपर से फ़क़ीरों ने नाक में दम कर दिया था। “हक़ अल्लाह हक़, हक़, हक़।”

    काफ़ी देर से सकीना ख़ाला नोट कर रही थीं। एक फ़क़ीर उनके पीछे हक़ हक़ के नारे लगा रहा था। ख़ाला तो भड़क उठीं। “अरे किस चीज़ का हक़... बिजली के बिल से तुम लोग वाक़िफ़ नहीं, मकान के किराए का तुम्हें नहीं पता। आटे दाल की क़ीमत का तुम लोगों को अंदाज़ा नहीं और कहते हो हक़। मैं कहती हूँ किस चीज़ का हक़ माँगते हो। अरे मेरी बात तो सुनो किधर भाग रहे हो, हट्टे-कट्टे हो, कमाया करो।” ख़ाला पुकारती रह गईं और फ़क़ीर ये जा, वो जा।

    ख़ाला अभी दो क़दम आगे बढ़ी ही थीं कि काली बिल्ली ने उनका रास्ता काट लिया। फिर तो ख़ाला के उस रास्ते से गुज़रने का नाम ही पैदा नहीं होता। ख़ाला बे-चारी पंद्रह मिनट का रास्ता छोड़ कर एक घंटे वाले रास्ते पर चल पड़ीं। लेट घर पहुँचने पर जब रुख़साना ने वजह पूछी तो ख़ाला ने बिल्ली को खरी-खरी सुना डालीं। वजह मालूम होने पर रुख़साना बहुत हंसी और फुप्फो को समझाने लगी, “बिल्ली तो हर गली-नुक्कड़ से गुज़रती है, तो हर किसी पर मुसीबतें तो नहीं आती नाँ?”

    “बेटा तू इन बातों को नहीं समझती, ये हम औरतों की बातें होती हैं।” ख़ाला ने उंगली नचा-नचा कर समझाने की कोशिश की। रुख़साना बेचारी ठंडी आह भर के रह गई।

    “बेटा तू ने पहले भी कहा था कि सब बकवास होता है लेकिन वो देखा नहीं था। कव्वा जब काँव-काँव कर के गया। शाम को फिर सुल्ताना बाजी आई नहीं थीं क्या?” ख़ाला ने सामने वाली पड़ोसी की तरफ़ इशारा कर के कहा।

    “तो वो कौन सा मेहमान हैं, रोज़ तो जाती हैं। टमाटर, अदरक, आलू, मिर्चें माँगने। ऐसा लगता है हमने सब्ज़ियों की दुकान खोल रखी है।” वो भी ख़ाला की भतीजी ही थी, कुछ तो असर पड़ना था।

    “अरी चुप कर कुछ ज़्यादा ही बोलने लगती है तू आज-कल।” ख़ाला ने डपटा और सब्ज़ी उठा कर किचन की तरफ़ चल दीं।

    धड़ धड़ धड़...

    “कौन है? सब्र कर लो रही हूँ।” किसी ने बे-सबरी से दरवाज़ा पीटा तो रुख़साना पैरों में जूते उड़ेस कर भागी।

    “बोलो क्या हुआ राशी?” रुख़साना ने दरवाज़े पर खड़े बच्चे से पूछा।

    “रुख़साना बाजी चचा मुंशी की बीवी का इंतिक़ाल हो गया है। अम्मी कह रही थीं अगर जाना है तो साथ चलते हैं।” बच्चा ख़बर दे कर रफ़ू-चक्कर हो गया और ख़ाला जो कि बावर्ची-ख़ाने से निकलती हुई उसकी बात सुन चुकी थीं, शुरू हो गईं।

    “मैंने कहा था ना... उस मनहूस बिल्ली ने कुछ कुछ गड़-बड़ करनी है। कैसे टकटकी बाँधे देख रही थी मुझे। देख लिया तू ने। मुझे झूटा कहती है।”

    “तो ख़ाला ये मुंशी की बीवी कौन सा तुम्हारी सगी है। दुआ-सलाम ही तो है आपकी।” रुख़साना ने चादर देते हुए कहा, “और आपने ख़ुद ही तो कहा था कि मैं दूसरे रास्ते से गई। फिर?”

    “अच्छा चल वक़्त ज़ाए कर।” ख़ाला सकीना चादर पहनते ही निकल पड़ीं।

    “देख रुख़साना किधर है तू? ये देख मेरी जूती पर जूती चढ़ी हुई है। लोग कहते हैं जब ऐसा हो तो बंदा कहीं जाता है। अब ये झूट तो नहीं है ना... मैं आज शमशाद की बरसी में जाऊँगी।” ख़ाला ने तेज़ आवाज़ में ऐलान किया।

    “अच्छा भई फुप्फो जाओ, मेरा क्या।” रुख़साना ने हार मानते हुए कहा।

    “तू ने मुँह क्यों फुला लिया। ले आऊँगी तेरे लिए एक प्लेट बिरयानी। अब मुँह ठीक कर।” वो बेचारी क्या कहती, सर पीट कर रह गई।

    “मेरी उल्टी आँख फड़क रही है, मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा।” ख़ाला बरसी से वापस आते ही फ़र्याद करने लगीं।

    “उफ़ फुप्फो आप इतनी तवह्हुम-परस्त क्यों हैं?” रुख़साना तो रोज़-रोज़ के ड्रामों से चिढ़ कर रह गई थी।

    “फुप्फो आप ख़ुद सोचें... लोग जो इतना झूट बोलते हैं कि पायचा उल्टा हो जाए तो लोग कहीं जाते हैं, बिल्ली रास्ता काटे तो कोई आफ़त आती है और आपने जैसा कहा कि आँख फड़के तो कोई मुसीबत आती है वग़ैरा... ऐसा जो कहता है आप जा कर उनसे पूछें कि ये कौन सी किताब में लिखा है या किस पैग़ंबर या नबी ने फ़रमाया है? हमारे लिए तो क़ुरआन-ओ-हदीस ही मुस्तनद ज़राए हैं अगर उनमें हो तो हमें ऐसी बे-पर की बातों पर क़तअन ध्यान नहीं देना चाहिए।” उसने तो फुप्फो को अपनी तरफ़ से समझाने की भरपूर कोशिशें की और वाक़ई फुप्फो समझ गईं। ख़ूब सोच समझने के बाद फ़ैसला किया कि आइन्दा कभी तवह्हुम-परस्ती करूँगी।

    अगले दिन रुख़साना सो कर उठी तो उसका पाइंचा मुड़ा हुआ था। उसे मालूम था कि ख़ाला ने तवह्हुम-परस्ती को सलाम कह दिया है मगर उल्टा पाइँचा ख़ाला को पुरानी डगर पर ले आए, सकीना ने उसे सही करना चाहा मगर एक ख़याल के तहत उसे उल्टा ही छोड़ दिया। ख़ाला अचानक कमरे में दाख़िल हुईं, उनकी नज़र सीधी उसके पाइँचे की जानिब गई... “अब ये पाइँचा?” ख़ाला कहते-कहते रुक गईं। रुख़साना ने ख़ाला की तरफ़ देखा तो दोनों हंस पड़ीं।

    ख़ाला समझ गईं कि मेहमान ने अगर आना हो तो उसके लिए कव्वों का काएँ-काएँ करना और पाइँचे का उल्टा होना कोई मा'नी नहीं रखता।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए