मछलियों की मलिका
ये एक मछेरे की कहानी है। वो ग़रीब था। उसका नाम शामू था। वो अपनी बीवी और तीन बच्चों के साथ एक छोटे से घर में रहता था। उस के बच्चे अभी बहुत छोटे थे और उसके काम में उसका हाथ नहीं बटा सकते थे। वो सुब्ह-सवेरे अपना जाल लिए घर से निकल जाता और दरिया पर मछलियाँ पकड़ने के लिए पहुंच जाता। उसके पास जो जाल था, वो बहुत छोटा था और उस में ज़्यादा मछलियाँ नहीं आती थीं, इसलिए उसका गुज़ारा बहुत मुश्किल से होता था। वो बहुत दिनों से इस कोशिश में था कि उसके पास किसी तरह थोड़े से पैसे जमा हो जाएँ और वो एक बड़ा जाल तय्यार कर ले लेकिन जब भी उसके पास कुछ पैसे जमा होते, उस का कोई बच्चा बीमार हो जाता और वो पैसे उसके ईलाज पर ख़र्च हो जाते। इस तरह वो अब तक बड़ा जाल बनाने में कामियाब नहीं हो सका था।
एक दिन वो सुब्ह-सवेरे अपना जाल लेकर दरिया पर पहुंचा। आज उसने दरिया के एक ऐसे किनारे पर जाल डाला, जिस पर पहले कभी नहीं डाला था।
आज भी वो इस सोच में गुम था कि किसी तरह एक बड़ा जाल बनाए कि अचानक उसके जाल में हरकत हुई। वो चौंक उठा। कोई चीज़ उस के जाल को अंदर खींच रही थी। वो समझा, ये ज़रूर कोई बहुत बड़ी मछली है। उसने जाल को बड़ी मज़बूती से पकड़ लिया और खींचने लगा। वो ये देखकर हैरान रह गया कि जाल में सिर्फ़ एक मछली थी। उसका रंग सुनहरी था। वो बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन ताक़तवर ज़रूर थी क्योंकि शामू ने उसे बड़ी मुश्किल से खींचा था। मछली बहुत ख़ूबसूरत थी। उसने सोचा, इस मछली को पानी में डाल कर ले जाना चाहिए, कोई दौलतमंद उसे पालने के लिए अच्छे दामों ख़रीद लेगा और हो सकता है इस बहाने मैं एक बड़ा जाल बनाने के क़ाबिल हो जाऊं। ये सोच कर उसने मछली की तरफ़ हाथ बढ़ाया, अचानक एक आवाज़ उस के कानों से टकराई।
‘‘ख़बरदार, मुझे ना छूना, वर्ना जल जाओगे।’‘
शामू ने हैरान हो कर इधर उधर देखा लेकिन वहाँ कोई नज़र ना आया। उसने समझा, उस के ज़रूर कान बजे हैं, एक-बार फिर उसने मछली को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। फिर वही आवाज़ आई।
‘‘ख़बरदार, मुझे हाथ ना लगाना, वर्ना जल जाओगे।’‘
इस मर्तबा उसने देखा कि मछली का मुँह बातें करने के अंदाज़ में हिला था।
‘‘अरे, तो क्या ये मछली बोल रही है। अरे बाप रे’’ ये ख़्याल आते ही वो डर गया। उसने सोचा, ये मछली ज़रूर कोई जिन्न भूत है जो मछली के रूप में है। उसने हिम्मत कर के कहाः
‘‘तुम कौन हो? मैंने आज तक किसी मछली को बातें करते नहीं सुना।’’
‘‘मैं मछलियों की मलिका हूँ। इसलिए मैं तुमसे बातें कर सकती हूँ और तुम मेरी बातें समझ भी सकते हो।’’
‘‘मछलियों की मलिका।’’ शामू ने हैरान हो कर कहा। उसे अपने कानों पर यक़ीन नहीं आरहा था।
‘‘हाँ, अगर तुम मुझे हाथ लगाओगे तो जल कर राख हो जाओगे और अगर मुझे छोड़ दोगे तो बहुत नफ़ा’ में रहोगे।’’ मछलियों की मलिका बोली।
‘‘भला तुम्हें छोड़कर मुझे क्या फ़ायदा होगा?’’
अगर तुम मुझे छोड़ दो तो मैं तुम्हें एक ऐसी चीज़ दूंगी कि तुम बहुत अमीर कबीर बन जाओगे और फिर तुम्हें मछलियाँ पकड़ने की ज़रूरत नहीं रहेगी।
‘‘अच्छा तो फिर मुझे वो चीज़ दे दो, मैं तुम्हें छोड़े देता हूँ।’’
‘‘वा’दा करते हो?’’ मलिका ने पूछा।
‘‘हाँ बिलकुल, जूं ही तुम मुझे वो चीज़ दोगी, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।’’
‘‘अच्छा, ये देखो। मैं अपने मुँह से एक मोती निकाल कर रेत पर गिरा रही हूँ, तुम उसे उठा लो। इस मोती की करामत ये है कि उसे किसी भी क़िस्म के बीमार के जिस्म से छू दो तो वो देखते ही देखते भला-चंगा हो जाएगा और अगर किसी पर आसेब का साया हो तो साया उस पर से इस मोती के छूते ही उतर जाएगा।
शामू ये सुनकर बहुत ख़ुश हुआ क्योंकि अगर वाक़ई मोती इस ख़ासियत का मालिक था तो वो बहुत जल्द बहुत मालदार हो सकता था।
उसने रेत पर देखा वहाँ बैर के बराबर एक सफ़ैद मोती पड़ा था। उसने झट उस मोती को उठा लिया और मछली को वा’दे के मुताबिक़ जाल से आज़ाद कर दिया।
वो ख़ाली हाथ घर वापस आया तो उस की बीवी ने हैरान हो कर कहाः
‘‘क्या बात है। आज तुम ख़ाली हाथ आगए।’’
‘‘मैंने ये काम छोड़ दिया है, अब मैं बीमारों का ईलाज किया करूँगा, मैं हकीम बन गया हूँ।’’
‘‘हकीम बन गए हो, तुम्हारा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया है।’’
‘‘बस देखती जाओ।’’
उसी दिन से शामू ने बीमारों का ईलाज करना शुरू कर दिया। उसने अपने घर के दरवाज़े पर ये लिखवा कर लगा दिया कि यहाँ हर बीमारी का ईलाज होता है।
लोग इस बोर्ड को पढ़ पढ़ कर बहुत हँसे और कहने लगे, लो अब मछेरे हकीम बन बैठे। कई दिन तक उसके पास कोई मरीज़ ना आया। घर में खाने पीने को कुछ ना बचा। नौबत फ़ाक़ों तक पहुंच गई। उस की बीवी ने ताने दे देकर उसका नाक में दम कर दिया। आख़िर शामू ने सोचा, इस तरह तो काम नहीं बनेगा। वो एक डाक्टर की दुकान के पास जाकर खड़ा हो गया और किसी मरीज़ के आने का इंतिज़ार करने लगा। जल्द ही एक शख़्स अपनी बेटी को लेकर दुकान की तरफ़ आता नज़र आया। लड़की के हाथ पैर मुड़े हुए थे। शामू जल्दी से आगे बढ़ा और उस आदमी से बोलाः
‘‘क्या तुम इस बच्ची का ईलाज कराने के लिए आए हो?’’
‘‘हाँ, क्यों क्या बात है।’’ उसने हैरान हो कर पूछा
‘‘मैं उसे मिनटों में ठीक कर सकता हूँ।’’ शामू ने जल्दी से कहा।
‘‘तुम ठीक करोगे, इस का ईलाज तो शहर का बड़े से बड़ा हकीम और बड़े से बड़ा डाक्टर भी नहीं कर सका और फिर तुम तो मछेरे हो, मैं तुम्हें जानता हूँ।’’
‘‘मैं तुमसे कुछ नहीं मांगता। बस इस बच्ची के जिस्म पर हाथ फेरूँगा और तुम्हारी बच्ची ठीक हो जाएगी। ये लो।’’
ये कह कर उसने अपना हाथ उस बच्ची के जिस्म पर फेर दिया। उस के हाथ में सफ़ेद मोती था जो उसे मछलियों की मलिका ने दिया था लेकिन उसने मोती को छुपा रखा था। उस आदमी को मोती नज़र नहीं आया। बस वो इतना देख सका कि शामू ने उसकी बच्ची के जिस्म पर हाथ फेरा था। दूसरे ही लम्हे उस बच्ची के हाथ और पैर बिलकुल सीधे हो गए। वो आदमी हैरान रह गया। शामू मुड़ा और अपने घर आगया।
जल्द ही ये ख़बर सारे शहर में फैल गई। दूसरे दिन उस के घर के सामने बहुत से मरीज़ जमा हो चुके थे। शामू ने उनसे मुँह-माँगे पैसे वसूल किए और बीमार जिस्मों पर मोती फेरता रहा लेकिन उसने ये ज़रूर ख़्याल रखा कि ग़रीबों से कुछ ना मांगा।
होते होते ये ख़बर बादशाह तक पहुंची कि एक शख़्स बीमार जिस्म पर हाथ फेरता है और बीमार तंदुरुस्त हो जाता है। बादशाह की बेटी पर बहुत अर्से से किसी जिन्न का साया था। उसने फ़ौरन अपने आदमी शामू के पास भेजने और उसे महल में बुलवाया। शामू ने महल में जाकर शहज़ादी के जिस्म से भी मोती छू दिया। देखते ही देखते शहज़ादी होश में आगई और ख़ुश ख़ुश बातें करने लगी। बादशाह बहुत ख़ुश हुआ और उसे इनाम-ओ-इकराम देकर रुख़स्त किया।
शामू जब तक ज़िंदा रहा लोगों का ईलाज करता रहा। उसने ग़रीबों से कभी कोई पैसा ना लिया। मरते वक़्त उसने अपने बेटों को भी ये नसीहत की कि ''ग़रीबों से कभी कोई पैसा ना लेना।’’
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