मैना की दुम
एक मैना थी। ये बहुत भूकी थी। अपनी भूक मिटाने के लिए इसने इधर-उधर देखा। अचानक इसे एक घर में दूध की प्याली रखी नज़र आई, दिल ललचा गया, फुर्र से उड़ कर प्याली पर जा बैठी और दूध पीने लगी। दूध पीते में इसकी दुम-ए-हवा में लहरा रही थी।
अचानक एक बड़ी-बी घर में आईं। उन्होंने मैना को दूध पीते देखा। बहुत लाल-पीली हुईं और इसको पकड़ने दौड़ीं मगर मैना की लहराती हुई दुम ही पकड़ सकीं। मैना ने अपने पर मारे अपनी दुम छुड़ाने के लिए। मगर मैना दुम तो न छुड़ा पाई और पर फड़-फड़ाने में दूध की प्याली गिर गई। सब दूध गिर गया। मैना ने अपनी दुम को और ज़ोर से खींचा और वो फ़ौरन आज़ाद हो गई। मगर ये क्या? इसकी दम तो बुढ़िया के हाथ में रह गई थी! चेह चेह… कितनी ख़ूबसूरत दुम थी।
“अच्छी बड़ी-बी मेरी दुम वापिस कर दो।” मैना ने इल्तिजा की। मगर बड़ी-बी न मानीं कहने लगीं,
“मैं तुम्हारी दुम तब वापिस करूँगी जब तुम मेरा दूध वापिस कर दोगी।”
अब बे-दुम की मैना क्या करती। फिर से उड़ी और गाय के पास पहुँची।
“अच्छी गाय! अच्छी गाय! मुझे थोड़ा सा दूध दे दो। अगर तुम मुझे दूध दोगी तो ये दूध में बड़ी-बी को दूँगी और बड़ी-बी मुझको दुम वापिस कर देंगी। मुझे बग़ैर दुम के अपने अम्मी-अब्बा के सामने जाते शर्म आती है!”
“मैं ज़रूर तुम्हें अपना दूध दूँगी।” गाय ने जवाब दिया। “मगर पहले तुम थोड़ी सी घास ला दो।”
मैना फिर से उड़ी और चरागाह के पास पहुँची।
“अच्छी चरागाह क्या तुम मुझे थोड़ी सी घास दोगी। तुम घास दोगी तो मैं वो गाय को दूँगी। मैं गाय को घास दूँगी तो वो मुझे दूध देगी। मैं दूध बड़ी-बी को दूँगी तो वो मेरी दुम वापिस कर देंगी। मुझे बग़ैर दुम के अपने अम्मी-अब्बा के पास जाते शर्म आती है!”
“मैं तुम्हें घास दूँगी।” चरागाह ने कहा। “मगर पहले तुम मुझे पानी ला दो।”
मैना फिर से उड़ी और उड़ती-उड़ती एक सक्के के पास पहुँची।
“अच्छे सक्के मियाँ! अच्छे सक्के मियाँ! क्या तुम मुझे थोड़ा सा पानी दोगे?” मैना ने गिड़गिड़ा कर कहा।
“तुम मुझे पानी दोगे तो मैं चरागाह को दूँगी। मैं चरागाह को पानी दूँगी तो वो मुझे घास देगी। चरागाह मुझे घास देगी तो मैं वो घास गाय को दूँगी। वो मुझे दूध देगी। मैं दूध बड़ी-बी को दूँगी और वो मुझको दुम वापिस करेंगी। मुझे बग़ैर दुम के अपने अम्मी-अब्बा के पास जाते शर्म आती है।”
“मैं तुम्हें पानी ज़रूर दूँगा। मगर मैं भूका हूँ।” सक्के ने कहा, “पहले मुझे अण्डा ला दो।”
मैना फिर से उड़ी और मुर्ग़ी के पास जा पहुँची।
“ए बी कुट कुट कटाक! ए बी कुट कुट कटाक! मुझे अण्डा दो।” मैना ने हाँपते हुए कहा। उड़ते-उड़ते उसकी साँस फूल गई थी ना...
“तुम मुझे अण्डा दोगी तो मैं उसे सक्के को दूँगी। अण्डा सक्के को दूँगी तो वो मुझे पानी देगा। सक्का मुझे पानी देगा तो वो पानी में चरागाह को दूँगी। चरागाह को पानी दूँगी तो वो मुझे घास देगी। मैं वो घास गाय को दूँगी तो मेरी दुम मुझे मिल जाएगी और जब मुझे दुम मिल जाएगी तब मैं अपने अम्मी-अब्बा के घर जा सकूँगी। मुझे बग़ैर दुम के अपने अम्मी-अब्बा के घर जाते हुए शर्म आती है।
मुर्ग़ी ने मैना को देखा... “चेह चेह... वाक़ई बे-चारी बग़ैर दुम के कितनी बुरी लगती है और फिर वो ऐसी हालत में अपने अम्मी-अब्बा के पास जाएगी तो वो इसे डाँटेंगे। शायद बग़ैर दुम के पहचान भी न सकें।” मुर्ग़ी को तरस आ गया और उसने फ़ौरन एक अण्डा दे दिया।
मैना अण्डा ले कर फुर्र से उड़ी और उसे सक्के को दिया। सक्के ने उसे पानी की एक प्याली दी। मैना पानी ले कर फुर्र से उड़ी और चरागाह को दिया। चरागाह ने उसे घास दी। मैना ये घास ले कर फुर्र से उड़ी और गाय को दी। गाय ने उसे दूध की एक प्याली दी।
मैना दूध की प्याली ले कर उड़ी और बड़ी-बी के घर पहुँची। दूध बड़ी-बी को दे दिया। बड़ी-बी बहुत नेक थीं। उन्होंने वा'दे के मुताबिक़ दुम वापिस कर दी। बल्कि मैना को अपनी दुम बाँधने में मदद भी दी। मैना ने दो-तीन बार उड़ कर देखा कि दुम अच्छी तरह लग गई या नहीं और वो बड़ी-बी का शुक्रिया अदा करने के बा'द अपने अम्मी-अब्बा के पास उड़ गई। अब उसे दुम मिल गई थी। फिर अपने अम्मी-अब्बा के सामने जाते क्यों शरमाती!
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