किसी बस्ती से दूर खुले मैदान में एक हरा-भरा तनावर नीम का पेड़ था। उसकी घनी छाओं में कई परिंदे आ कर चहचहाते और मस्ती में एक डाल से दूसरी डाल पर फुदकते रहते। सुबह-ओ-शाम चिड़ियों की चहकार से पेड़ गूँज उठता था। उस पेड़ की मर्कज़ी शाख़ पर एक कोयल बसी हुई थी, पुरानी रिफ़ाक़त के सबब कोयल के दिल में पेड़ के लिए अपनाइयत का बड़ा जज़्बा था। जब पेड़ सुनसान और फ़िज़ा ख़ामोश होती। कोयल अपनी मधुर, सुरीली आवाज़ में नग़मे बिखेर कर पेड़ का दिल बहलाया करती। कोयल की कूक और चहचहाहट पेड़ के दिल में उतरती चली जाती और वो मसरूर हो कर झूम उठता, चुनाँचे पेड़ निहायत मुत्मइन और ख़ुशहाल था कि उसकी ज़िंदगी में एक सानिहा गुज़रा।
एक सुबह जब काले बादल बरस के छट गए और सूरज ने अपनी सुनहरी चादर ज़मीन पर फैलाई, पेड़ को अपने पहलू में एक लतीफ़ सी गुदगुदाहट महसूस हुई। पहली बार उसने झुक कर अपनी जड़ों की तरफ़ देखा। चंदन का नौ-ख़ेज़ पौदा मुस्कुरा रहा था। उसे देख कर पेड़ बहुत ख़ुश हुआ। चंदन की ताज़गी और ख़ुशबू पेड़ का दिल लुभाने लगी। हवा के झोंकों से उसके नर्म-ओ-नाज़ुक पत्ते पेड़ के तने से अठखेलियाँ करते, जिससे पेड़ की रगों में पुर-कैफ़ लहरें दौड़ जातीं और लुत्फ़-ओ-इंबिसात की अनोखी लज़्ज़त उसे बे-ख़ुद कर देती। चंदन की रोज़-अफ़्ज़ूँ नश्व-ओ-नुमा के साथ-साथ पेड़ की रग़बत भी बढ़ती गई।
रफ़्ता-रफ़्ता चंदन की टहनियाँ पेड़ की डालियों से हम-आग़ोश हो गईं और उसकी रग-रग में चंदन की ख़ुशबू रच बस गई। पत्ता-पत्ता महक उठा और पेड़ के शब-ओ-रोज़ बड़े पुर-लुत्फ़ गुज़रने लगे। मगर बेचारे पेड़ के नसीब में ये ऐश-ओ-निशात के दिन बहुत कम लिखे थे। चंदन के पौदे को जो, अब दरख़्त बन चुका था एक सौदागर ने मुँह-माँगी क़ीमत दे कर ख़रीद लिया और उसे काट कर ले गया। पेड़ तड़प उठा। हज़ारों आरियाँ जैसे उसके अपने वुजूद पर चल गई हों।
चंदन के बग़ैर पेड़ को अपने अंदर ख़ला सा महसूस होने लगा। कायनात सूनी-सूनी और बे-रंग नज़र आने लगी और वो खोया-खोया उदास रहने लगा। वक़्त गुज़रता गया मगर पेड़ चंदन की जुदाई का सदमा नहीं भूल सका। इसी ग़म में उसकी टहनियाँ झुक गईं, पत्ते ज़र्द हो कर झड़ गए और वो अंदर से सूख कर रह गया।
अब पेड़ के जीवन में घनी छाओं थी न ठंडी-ठंडी हवाएँ। माहौल में कोई दिलकशी नहीं। परिंदे उसके क़रीब से कतरा के निकल जाते। चिड़ियों ने भी दूर किसी कुंज में अपना बसेरा कर लिया था। बस सन्नाटा और वीरानी पेड़ का मुक़द्दर बन गई थी। मगर पेड़ से कोयल का देरीना रिश्ता बराबर क़ायम था। वो अब भी पहले की तरह अपनी मधुर कूक से पेड़ का दिल बहलाने की पूरी कोशिश किया करती।
देखा बच्चो... सच्चे रफ़ीक़ की यही पहचान है कि वो बुरे वक़्त में भी साथ नहीं छोड़ता।
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