पल दो पल का शहज़ादा
अख़तर एक दिन जंगल में खेल रहा था तो उसे एक गुड़िया पड़ी हुई मिली। उसने सोचा, क्यों न गुड़िया ले जा कर अपनी छोटी बहन नजमा को दे दे। वो गुड़िया देख कर बहुत ख़ुश होगी। उसने ऐसा ही किया। गुड़िया उठा ली और उसे ले जा कर अपनी छोटी बहन नजमा को दे दिया।
नजमा गुड़िया देख कर ख़ुश तो हुई मगर ज़्यादा ख़ुश नहीं हुई क्योंकि वो गुड़िया काफ़ी मैली और गिर्द से अटी हुई थी। नजमा ने सोचा कि अगर वो गुड़िया को नहला दे तो साफ़ हो जाएगी। ये सोच कर नहलाने लगी। मगर जैसे ही उसने गुड़िया के सर पर पानी डाला। गुड़िया यका-यक एक ख़ूबसूरत लड़की में तबदील हो गई। नजमा पहले तो कुछ डरी मगर फिर हिम्मत करके उसने पूछा कि तुम कौन हो? उस लड़की ने कहा कि मेरा नाम शहज़ादी नीलम है। मैं मुल्क फ़ारस के बादशाह की लड़की हूँ। मगर तुम लोग कौन हो? और मैं यहाँ कैसे आ गई।
नजमा ने से पूरी कहानी सुनाई कि मेरे भाई जान गली में खेल रहे थे तो उन्हें एक गुड़िया मिली वो उसे उठा कर लाए। मैंने देखा कि गुड़िया काफ़ी ख़ूबसूरत है मगर बहुत मैली है। इसलिए मैं नहलाने लगी। लेकिन मैंने जैसे ही उस पर पानी डाला गुड़िया ग़ायब हो गई और उसकी जगह तुम खड़ी हो गईं।
तब शहज़ादी ने नजमा को अपना हाल सुनाया। उसने कहा कि में एक दिन अपने बाग़ में तितली पकड़ रही थी कि मेरे पास एक आदमी आ पहुँचा। उसके बाल और दाढ़ी काफ़ी बड़े-बड़े थे। उसे देख कर मैं ख़ौफ़-ज़दा हो गई। उसने कहा कि नीलम! तुम्हारे अब्बा बादशाह हैं। उनके पास हीरे-जवाहरात, सोना-चाँदी, हाथी-घोड़े, फ़ौज और बहुत कुछ है। मगर फिर भी मैं तुम्हारे वालिद से ज़्यादा ताक़तवर हूँ क्योंकि मैं एक जादूगर हूँ। मैं जादू के इस ज़ोर से तुम्हारे इस महल को एक झोंपड़ी में तबदील कर सकता हूँ। फिर वो क़हक़हा लगाने लगा और बोला मैं तुम्हें शहज़ादी से एक गुड़िया बना देता हूँ और तुम उस वक़्त तक गुड़िया होगी जब तक कि कोई तुम्हारे सर पर पानी न डालेगा। फिर मुझे कुछ याद नहीं।
अपनी दास्तान सुना कर वो रोने लगी और मिन्नत-समाजत करने लगी कि मुझे जल्दी मेरे महल में पहुँचा दो। मेरे अब्बा हुज़ूर और अम्मी जान मुझे तलाश कर रहे होंगे। अख़तर क़रीब ही खड़ा हैरत से ये सब देख रहा था उसने कहा कि शहज़ादी नीलम आज रात तुम यहाँ ठहर जाओ। कल सुबह मैं तुम्हारे महल पहुँचा दूंगा।
आख़िर एक रात वहाँ रहने के लिए शहज़ादी नीलम तैयार हो गई। अख़तर ने जल्दी-जल्दी मुल्क फ़ारस जाने की तैयारी शुरू कर दी। सुबह होते ही वो शहज़ादी नीलम के साथ मुल्क फ़ारस रवाना हो गया।
जब वो मुल्क फ़ारस पहुँचा तो सुना कि बादशाह ने ये ऐलान कर रखा है कि जो भी शख़्स शहज़ादी नीलम का पता बताएगा या खोज लाएगा। बादशाह उसे अपनी सल्तनत का आधा हिस्सा दे देगा या उसकी शादी शहज़ादी नीलम से कर दी जाएगी।
जब बादशाह को शहज़ादी नीलम के आने की ख़बर हुई तो वो निहायत ख़ुश हुआ और पूरे मुल्क में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। जब सिपह-सालारों ने शहज़ादी नीलम और अख़तर को बादशाह के सामने पेश किया तो बादशाह ने अख़तर को अपने क़रीब बिठाया और कहा कि तुमने मेरी बेटी को मुझ तक पहुँचाया है इसलिए मैं तुमसे बहुत ख़ुश हूँ और आज से तुम इस महल के ख़ास मेहमान हो। मैंने ऐलान कर रखा था कि जो शख़्स भी शहज़ादी नीलम को खोज लाएगा उसे अपनी सल्तनत का आधा हिस्सा दे दूँगा या उसकी शादी शहज़ादी नीलम से कर दी जाएगी। तुम शहज़ादी को लाए हो इसलिए तुम्हारी शादी शहज़ादी नीलम से कर दी जाएगी और अब जब तक तुम्हारे लिए अलग महल नहीं बन जाता है तुम इसी महल में रहोगे।
अख़तर ने कहा कि बादशाह सलामत लेकिन मेरी अम्मी और मेरी छोटी बहन नजमा मेरे लिए बहुत परेशान होंगी और घबराएँगी। बादशाह ने कहा कि तुम उनकी फ़िक्र मत करो। मैं अभी सिपाहियों को तुम्हारे मुल्क रवाना करता हूँ। वो उन्हें यहाँ ले आएँगे और उसी वक़्त चंद सिपाही अख़तर से उसके शहर और घर का पता मा'लूम करके उसके मुल्क रवाना हो गए। कुछ ही दिनों के बा'द सिपाही अख़तर की अम्मी और उसकी बहन नजमा को ले कर पहुँच गए। अख़तर अपनी अम्मी और नजमा से मिल कर बहुत ख़ुश हुआ। शहज़ादी नीलम भी नजमा से मिल कर बहुत ख़ुश हुई।
उस वक़्त तक अख़तर के लिए अलग एक महल भी तैयार हो गया था। बादशाह ने कहा कि आज से तुम लोग इस महल में रहोगे। मगर शहज़ादी नीलम ने कहा कि कि अब्बा हुज़ूर मैं इस महल में अकेली रहती हूँ। हमारा कोई भी भाई-बहन नहीं है। अकेले खेलने में मेरा दिल नहीं लगता है। इसलिए नजमा को यहीं रहने दीजिए। मैं इसके साथ खेला करूँगी। नजमा भी शहज़ादी के साथ उसके महल में रहने के लिए तैयार हो गई। अख़तर और उसकी अम्मी दूसरे महल में रहने लगीं। वो महल भी बादशाह के महल से ज़्यादा दूर नहीं था। जब भी नजमा की तबीयत घबराती वो अपनी अम्मी से मिलने चली जाया करती। बादशाह ने सिपह-सालारों को ये भी हुक्म दे दिया कि वो अख्तर की ता'लीम-ओ-तरबियत का इन्तेज़ाम कर दें।
जिस तरह शहज़ादों को ता'लीम दी जाती है उसी तरह अख़तर को भी ता'लीम दी जाने लगी और उसे पढ़ने-लिखने के इलावा शह-सवारी, नेज़ा-बाज़ी, ग़र्ज़ कि तमाम फ़न-ए-जंग सिखाए जाने लगे। जब अख़तर जवान हो गया और उसकी ता'लीम-ओ-तरबियत पूरी हो गई तो सिपह-सालारों ने उसे फिर बादशाह के सामने पेश किया। बादशाह ने देखा कि अब वो जवान हो गया है। उसको अपना क़ौल याद आया। उसने कहा कि ठीक है शादी की तैयारी की जाए।
दोनों तरफ़ महल में शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं। अब वो अख़तर न कहा जाता था बल्कि शहज़ादा अख़तर पुकारा जाता था। नजमा भी अपनी अम्मी के पास चली आई। शहज़ादा अख़तर को नहला-धुला कर दूल्हा बनाया गया। ख़ूब बैण्ड-बाजे और रौशनी के साथ बरात रवाना हुई। बरात के आगे-आगे लोग तरह-तरह की आतिश बाज़ियाँ छोड़ रहे थे। जिससे कभी-कभी ख़ूब रौशनी और चमक पैदा हो जाती और कभी-कभी ज़ोरों की आवाज़ होती।
एक बार पटाख़े की आवाज़ सुन कर वो घोड़ा भड़क गया जिस पर अख़तर सवार था। घोड़ा बे-तहाशा भागने लगा। जिससे अख़तर को बहुत डर लगने लगा। इतने में उसकी नींद टूट गई।
उसने देखा कि वो तो अपने बिस्तर पर सोया हुआ था। आसमान में बदली छाई हुई है और काफ़ी चमक और कड़क के साथ बारिश हो रही है। न महल है और न शहज़ादी नीलम है।
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