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फूल और बच्चे

साहब अली

फूल और बच्चे

साहब अली

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    मास्टर के हाथ में आज छड़ी नहीं थी। चाक भी नहीं था। उनके हाथ में आज फूल थे। रंग-बिरंगे बहुत सारे फूल थे। जासुन्दी के, गुलाब के, गुल शिबू के और मोगरे के। क्लास ख़ुशबू से मुअत्तर हो गई।

    बच्चों को ख़ूब मज़ा आया। वो नाचने लगे।

    “मास्टर साहब आज फूल ले कर आए हैं।”

    जिसे देखो वो यही कह रहा था। “लेकिन ये दूसरे कैसे फूल हैं उनके हाथ में? कद्दू के और भिंडी के? ये क्यों ले कर आए हैं?” बच्चों को अचम्भा हुआ।

    मास्टर साहब ने फूल मेज़ पर रखे। बच्चे तेज़ी से दौड़ते हुए आए और इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गए। कुछ बच्चे ख़ुशबू सूँघने लगे।

    “अरे हाथ लगाओ इन्हें!” मास्टर साहब चिल्लाए, और अपनी जगह पर बैठो इसकी ख़ुशबू नहीं सूँघना है।”

    हाथ नहीं लगाना है, इनकी ख़ुशबू नहीं सूँघनी है।

    फिर क्यों ले आए ये फूल? सब एक दूसरे की तरफ़ टिकटिकी बाँध कर देखने लगे।

    मास्टर साहब ने गला साफ़ किया। क्लास की तरफ़ संजीदा नज़रों से एक बार देखा और बोलने की शुरूआत की... “आज मैं तुम्हें ‘फूल और उसके हिस्से’, इस ता'ल्लुक़ से मा'लूमात देने वाला हूँ।”

    बच्चों की आँखों के सामने कुछ चमकने लगा। उनके चेहरे हैरत से लंबे हो गए। आँखें फाड़े वो मास्टर साहब की तरफ़ लगे।

    “ये देखो जासुन्दी की कली। इसके नीचे के हरे हिस्से को पियाल-ए-गुल कहते हैं। पियाल-ए-गुल अच्छी तरह ज़ह्न में रखो। अब ये मोगरे का फूल देखो इसकी नली के ऊपर पंखुड़ियाँ जुड़ी हुई हैं। इन दोनों को मिला कर ताज-ए-गुल तैयार होता है। समझ में आया? ये दूसरा हिस्सा हुआ। ख़ास हिस्सा अंदर ही है अभी।”

    ऑफ़िस की घड़ी क्लास में से नज़र रही थी। एक लड़के ने आहिस्ता से झाँक कर देखा।

    “तुम वहाँ क्या देख रहे हो?” मास्टर चिंघाड़े... “यहाँ देखो। अब ये गुलशिबू का फूल देखो। इसे मैं चीरता हूँ। ये नरकोट भिंडी के फूल में बहुत होते हैं। अगस्ती के फूल में दस होते हैं। मोगरे के फूल में दो। दरमयान में जो ये हिस्सा नज़र रहा है ये है मादा-कोट। इस नर-कोटे पर एक थैली है। उसे ज़ीरा दान कहते हैं। ये ज़ीरे देखो बारीक-बारीक।”

    “मास्टर साहब हमें यहाँ से कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है।” दो बच्चों ने आहिस्तगी से उठ कर कहा।

    “दिखाई नहीं दे रहा? क्यों दिखाई नहीं दे रहा? दिखाई नहीं देता तो सिर्फ़ सुनो। घर जाने के बा'द देखो, बीच में मत बोलो। इस मादा-कोट में एक खोखली नली है। इसके ऊपर ये मोटा सा हिस्सा है इसे कलग़ी कहते हैं। इस के नीचे दूसरा खोखला हिस्सा है इसे बैज़ा-दान कहते हैं। इस बैज़ा-दान में ही बैज़े होते हैं। यही आगे जा कर फल बनता है समझे? इस तरह हर फूल के चार हिस्से होते हैं। पियाल-ए-गुल, ताज-ए-गुल, नर-कोट, मादा-कोट। अच्छी तरह समझ में आया?”

    बच्चों ने गर्दन हिलाई और जमाही ली। मास्टर साहब ने फूलों को काग़ज़ में लपेटा और खिड़की से बाहर फेंक दिया और अंगोछे से हाथ पोंछे। पीरियड ख़त्म होने में अभी भी कुछ वक़्त बाक़ी था।

    एक लड़का डरते-डरते थोड़ा सा उठा और आहिस्तगी से बोला, “मास्टर साहब हमें कोई कहानी सुनाइए ना!”

    “बैठ नीचे!” मास्टर साहब यक-लख़्त ग़ुस्से से चीख़े।

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