सिद्दू बहुत ही ग़रीब लड़का था। उसके पास पहनने के लिए ढंग की क़मीस भी नहीं थी। फटी हुई क़मीस पहन कर ही वो बाहर फिरता।
एक दिन वो खेत में फिर रहा था। वहाँ उसे एक कपास का पौदा नज़र आया। कपास के पौदे ने कहा, “क्यों रे लड़के, फटी हुई क़मीस पहन कर क्यों घूमते हो?”
सिद्दू ने कहा, “फिर क्या करूँ? मैं ठहरा ग़रीब, मुझे नई क़मीस कौन देगा?”
पौदे ने कहा, “मेरी कपास ले जाओ और इससे नई क़मीस बना लो।”
सिद्दू ने कपास के बिनोले में से सफ़ेद-सफ़ेद कपास जमा की और आगे बढ़ा।
रास्ते में एक काँटे-दार नाग-फनी का पौदा था। उसने कहा, “क्यों भई लड़के... कपास किस लिए ले जा रहे हो?”
सिद्दू ने कहा, “मुझे नई क़मीस बनानी है।”
नाग-फनी के पौदे ने कहा, “ठहरो! मैं तुम्हें कपास धुन कर देता हूँ।”
फिर नाग-फनी के पौदे ने अपने काँटे-दार फनों से कपास को धुन दिया। सिद्दू आगे बढ़ा।
एक दरख़्त पर मकड़ी अपना जाला बुन कर बैठी हुई थी।
उसने पूछा, “क्यों भई लड़के... कपास ले कर कहाँ जा रहे हो?”
सिद्दू ने कहा, “मुझे नई क़मीस बनानी है।”
मकड़ी ने कहा, “कपास यहाँ लाओ, मैं तुम्हें कपड़ा बुन कर देती हूँ।
मकड़ी ने झटा-झट कपड़ा बुन कर दे दिया। सिद्दू कपड़ा ले कर आगे बढ़ा। रास्ते में एक केकड़ा बैठा हुआ था।
उसने पूछा, “क्यों रे लड़के... कपड़ा ले कर कहाँ जा रहे हो?”
सिद्दू ने कहा, “मुझे नई क़मीस सिलवानी है।”
केकड़े ने कहा, “यहाँ लाओ वो कपड़ा, मैं तुम्हें कपड़ा काट कर देता हूँ।”
केकड़े ने झटा-झट कपड़ा काट कर दिया।
सिद्दू आगे बढ़ा। उसकी मुलाक़ात एक बगुले से हुई।
बगुले ने पूछा, “कपड़ा ले कर कहाँ जा रहे हो?”
सिद्दू ने कहा, “मुझे नई क़मीस सिलवानी है।”
बगुले ने अपनी लंबी चोंच में धागा लिया और झटा-झट क़मीस सी कर दी।
सिद्दू ने पुरानी क़मीस फेंक दी और नई क़मीस पहन कर अपनी माँ को दिखाने के लिए नाचते-कूदते घर पहुँचा।
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