तारों की जादूगरी
गाँव के बड़े से कुछ कच्चे कुछ पक्के मकान की खुली छत पर दरियों के ऊपर सफ़ेद चादरें बिछाकर सोने की कोशिश करते हुए दस साला ‘अयान’ और छः साला ‘हिफ़्ज़ा’ के सरों पर तारों भरे आसमान की ख़ूबसूरत चादर तनी हुई थी। दोनों बहन भाई बड़ी देर से लाखों करोड़ों छोटे बड़े तारों के जाल पर नज़रें गड़ाए ना जाने किस सोच में गुम थे।
अयान को लग रहा था जैसे ये किसी स्कूल का बड़ा सा खेल का मैदान है। खेल के घंटे में कुछ तारे आँख-मिचोली खेल रहे थे और कुछ एक दूसरे के कान में सरगोशी कर के किसी नई शरारत का प्लान बना रहे थे। बूढ़ा आसमान उन्हें देखकर धीमे धीमे मुस्कुरा रहा था। कुछ देर में हेडमास्टर अपनी किरनों की छड़ी लेकर आएंगे और सब तारे अपनी क्लासों में जाकर छिप जाएंगे।
फिर वो सोचता, ये तारे क्या हैं? साइंस की किताब में लिखा है कि ये जलते हुए आग के गोले हैं जो हमारी ज़मीन से अरबों खरबों मील दूर हैं इस लिए इतने छोटे नज़र आते हैं। कुछ तो सूरज से भी बड़े हैं। कुछ सूरज के गिर्द घूम रहे हैं, वो सय्यारे हैं। कुछ टहरे हुए हैं वो तारे हैं।
‘हाफ़िज़ जी’ कहते हैं ‘‘अल्लाह पाक ने तारे इस लिए बनए हैं ताकि रात के वक़्त ज़मीन और समुंद्र में सफ़र करने वालों को रास्ता दिखाऐं।’’
हिन्दी के सर कहते हैं कि ‘‘ज्योतिष विद्या के मुताबिक़ बड़े घूमने वाले तारे देवी देवता हैं और छोटे छोटे तारों से उनके घर बने हैं। ये कभी अपने घर में होते हैं और कभी दोस्तों और दुश्मनों के घरों का चक्कर लगा लेते हैं। वो ये भी कहते हैं कि दुनिया के हर आदमी का एक सय्यारा होता है।’’ नानी ‘अमीरन’ तो कुछ और ही कहती हैं।
अयान उन्हीं सोचों में गुम था कि हिफ़्ज़ा ने करवट लेकर पूछा,‘‘भय्या जो लोग मर जाते हैं वो कहाँ जाते हैं?’’
पिछले महीने दादी के इंतिक़ाल की वजह से हिफ़्ज़ा इतनी मुतास्सिर थी कि खाना पीना, हँसना बोलना, लिखना पढ़ना सब छोड़ रखा था। हर वक़त रोती रहती। अम्मी बहुत परेशान थीं उसकी वजह से।
अयान ने झट से नानी अमीरन की बात दोहरा दी, ‘‘मुन्नी वो आसमान में तारे बन जाते हैं’’।
‘‘तो क्या हमारी दादी भी तारा बन गई हैं?’’ उसने आँखों में आँसू भर कर पूछा।
‘‘हाँ मुन्नी, वो देखो। वो जो सबसे रौशन तारा है ना वो हमारी दादी ही तो हैं। वहाँ से हमें देख रही हैं और हम पर अपनी रौशनी बिखेर रही हैं’’।
‘‘भय्या क्या अब दादी कभी नहीं आएंगी?’’
‘‘अरे बे-वक़ूफ़, तारा बनने के बा’द भी कोई वापस आता है! ‘‘देखो वो कितनी ख़ुश हैं। अपनी सहेलियों में घिरी बैठी हैं। देखो कितनी चमक रही हैं। अब वहीं से हमारा ख़्याल रखती हैं। जब तुम रोती हो, पढ़ाई नहीं करती हो, स्कूल नहीं जाती हो, तो वो भी दुखी हो जाती हैं। उनकी रौशनी माँद पड़ जाती है, और कभी तो वो बादलों में मुँह छिपाकर रो पड़ती हैं। क्या तुम दादी को दुखी करना चाहती हो?’’
‘‘नहीं भय्या, अब मैं कभी नहीं रोऊँगी। पा-बंदी से स्कूल जाऊँगी और ख़ूब दिल लगा कर पढ़ूँगी। दादी चाहती थीं ना कि मैं डाक्टर बनूँ, मैं उन्हें डाक्टर बन कर दिखाऊँगी’’।
हिफ़्ज़ा ने अपनी ख़्वाब-आलूद आँखों से तारे को देखा और ख़्वाबों की दुनिया में खो गई।
और अयान सोच रहा था, तारे तो सच-मुच जादूगर होते हैं।
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