Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

तारीफ़ के लड्डू

हलीमा फ़िरदौस

तारीफ़ के लड्डू

हलीमा फ़िरदौस

MORE BYहलीमा फ़िरदौस

    तहसीन मियाँ घर में सब के चहेते थे। उनका पूरा नाम तहसीन अहमद था। बचपन ही से गोल-मटोल बिलकुल गुड्डे जैसे थे। अम्मी, अब्बू के ‘इलावा सब उन्हें कभी लड्डू तो कभी गुड्डू कह कर पुकारते थे। घर का हर शख़्स उनकी तोतली और मासूम बातों का दीवाना था।

    एक दिन उनकी अम्मी ने उन्हें नहला-धुला कर कुरता-पाजामा पहना कर तैयार किया। वो बड़े ख़ुश-ख़ुश नज़र रहे थे। पता नहीं उनके जी में क्या आया सीधे गए और अपने दादा जी की जा-ए-नमाज़ बिछाई, सज्दे किए और अम्मी के पास चले आए। अपनी तोतली ज़बान में कहने लगे, “अम्मी दी, अम्मी दी, नून आया, नून आया।”

    उनकी बात सुन कर बे-चारी अम्मी परेशान हो गई। “नून क्या बेटा, ठीक से बताओ।” इस पर वो झुँझला गए। फिर वही अलफ़ाज़ दोहराने लगे। “अम्मी नून, नून।”

    उनकी अम्मी ने सवाल किया, “अभी अलिफ़-बे का क़ायदा पढ़ा था। फिर तुम्हें नून क्यों याद आया?”

    तहसीन अम्मी को समझाने लगे, “अम्मी अल्लाह मियाँ को याद करें तो नून आता है ना। वो नून।”

    तब कहीं तहसीन मियाँ की बात अम्मी की समझ में आई। उन्होंने बेटे को प्यार करते हुए कहा, “मेरे लड्डू... वो नूर है, नूर। तुम अल्लाह को याद कर के आए हो ना... हाँ, हाँ, तुम्हारे चेहरे पर नूर आया है।”

    अक्सर तहसीन मियाँ के अब्बू-अम्मी उनकी बातें याद कर के हंसते और ख़ुश होते। वो भी क्या दिन थे... सुबह से शाम तक उनकी ता’रीफ़ होती। लड्डू मियाँ अपनी ता’रीफ़ सुन कर ख़ूब ख़ुश होते।

    ‘अलिफ़ से अल्लाह को पहचान’ नज़्म हो या ‘A For Apple’ एक साँस में सुनाते। घर पर आए मेहमानों के सामने अब्बू-अम्मी की फ़र्माइश पर तोते की तरह शुरू हो जाते। ता’रीफ़ के लड्डू खा कर फूल जाते, इन'आम के तौर पर जब उन्हें चॉकलेट या आइसक्रीम मिलती तो उनकी ख़ुशी और भी बढ़ जाती। अगर किसी ने ता’रीफ़ नहीं किया या फिर अम्मी ने तवज्जोह नहीं दिया तो बस लड्डू मियाँ रूठ जाते। इसलिए तहसीन के चाचा उन्हें ‘झट ख़फ़ा’ कह कर छेड़ते थे।

    एक दिन साल-गिराह पर उन्होंने नए कपड़े पहने। केक और मिठाई लिए पड़ोस की आफ़ी बाजी के घर गए। वो काम में मसरूफ़ थीं, उन्होंने तहसीन को देखे बग़ैर पूछा, “लड्डू मियाँ कैसे आना हुआ?”

    तहसीन को ग़ुस्सा गया, जवाब दिया, “ये मिठाई लीजिए।”

    आफ़ी ने सवाल किया, “किस ख़ुशी में?”

    “हम नहीं बताएँगे, आप अम्मी से पूछ लीजिए।” ये कह कर मिठाई टेबल पर रखी और मुँह फुलाए घर लौट आए।

    उनका फूला हुआ चेहरा देख कर अम्मी से रहा गया। पूछा, “लड्डू बेटा क्या हुआ?”

    अम्मी की बात सुन कर दो मोटे-मोटे आँसू उनकी आँखों से गिर पड़े। अम्मी से कहने लगे, “आफ़ी बाजी बहुत ख़राब हैं। उन्होंने हमें देखा और हमारे नए कपड़ों की ता’रीफ़ की और साल-गिराह मुबारक कहा।”

    “अब हम कभी उनके घर नहीं जाएँगे।”

    मम्मी समझाने लगीं, “बेटा, आफ़ी तुम्हारी साल-गिराह की तारीख़ भूल गई होगी। अच्छा, बेटा अब हंस दो। देखो तुम्हारे दोस्त और भाई भी आए हैं। चलो हम केक काटते हैं।”

    लड्डू मियाँ साल-गिराह की ख़ुशी में सब कुछ भूल कर दोस्तों में मसरूफ़ हो गए, मगर बात-बात पर ख़फ़ा होने की आ'दत कम हुई। जब उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया तो हफ़्ते में एक-दो बार उनका मूड बिगड़ जाता। स्कूल में टीचर बच्चों की ज़बानी नज़्में सुन कर सिर्फ़ शाबाश कहतीं बल्कि बच्चों की कलाई पर सितारे के निशान भी बनाती थीं। जिस दिन तहसीन मियाँ को सबसे ज़्यादा सितारे मिलते और टीचर वाह-वाह करते हुए उनकी पीठ थपथपाती तो उनका चेहरा खिल जाता। कभी सितारे कम मिलते तो वो बहुत ख़फ़ा होते। अगली जमा'अत तक पहुँचते-पहुँचते उनमें अपनी ता’रीफ़ सुनने की आदत बढ़ गई थी। उनकी जमा'अत के चालाक बच्चे तहसीन मियाँ की ख़ूब ता’रीफ़ कर के उन्हें बेवक़ूफ बनाते। कभी उनकी रंगीन पेंसिलें उड़ा लेते और कभी उनकी ड्राइंग बुक ही ग़ायब कर देते और उन्हें पता भी नहीं चलता।

    एक दिन तहसीन मियाँ ख़राब मूड में घर लौटे। जूते उतारे, बैग सोफ़े पर रखा। टाई निकाल कर फेंकी। मुँह फुलाए सर नीचे किए बैठे रहे। मम्मी समझ गईं, उनके लाडले के साथ कुछ हुआ है। प्यार से पूछा, “मेरे लड्डू को ग़ुस्सा किस बात पर है?”

    ख़फ़ा होते हुए उन्होंने पहले तो सर से अम्मी का हाथ झटक दिया, कहने लगे, “अम्मी आप मुझे लड्डू कहिए, अब मैं बड़ा हो गया हूँ।”

    अम्मी ने ख़ुशी से कहा, “अच्छा अब मेरा लड्डू बड़ा हो गया। अब तो तुम्हें तहसीन मियाँ कहना पड़ेगा। बेटा मेरी बात सुनो, ये ज़रा-ज़रा सी बात पर रूठना अच्छी बात नहीं। पहले कुछ खा लो फिर बताना स्कूल में क्या हुआ?”

    मैगी की प्लेट देख कर उनका ग़ुस्सा भाग गया। वो हाथ-मुँह धो कर आए और शौक़ से मैगी खाने लगे। फिर सामने अख़बार पढ़ते चाचा की बग़ल में जा बैठे। चाचा ने अख़बार से नज़रें हटा कर सवाल किया, “तहसीन मियाँ क्या बात है, क्या कोई काम?”

    उन्होंने आहिस्ता से जवाब दिया, “चाचा आपकी दी हुई नई कैप खो गई।”

    “अरे बुद्धू... आख़िर तुम कब सुधरोगे?” चाचा डाँटने लगे।

    तहसीन मियाँ चाचा को तफ़सील से बताने लगे, “जमील, समीर और नो'मान को मेरी कैप बहुत पसंद आई, सब ता’रीफ़ करते रहे, समीर पहन कर ख़ुश हुआ और कहने लगा ये मेरे साइज़ की है। पता नहीं उसने कब कैप बैग में रख ली। मेरे पूछने पर वो रोने लगा, क्या मैं चोर हूँ, तुम्हारी कैप मेरे पास क्यों होगी।”

    तहसीन की बातें सुन कर चाचा ने सवाल किया, “बेटा तुमने अपनी टीचर से शिकायत नहीं की?”

    “चाचा कल भी मेरी पैंसिल खो गई थी, जब टीचर से उसकी शिकायत की तो उन्होंने मुझे ही डाँट दिया था।”

    चाचा को तहसीन के भोले-पन पर तरस आया। समझाने लगे, “बेटा तहसीन आइन्दा एहतियात बरतना। तुम बड़े हो गए हो। तुम्हें अपनी चीज़ों का ख़्याल रखना चाहिए। ता’रीफ़ के लड्डू खाओगे तो पछताना पड़ेगा।

    तुम्हें वो चालाक लोमड़ी और बेवक़ूफ़ कव्वे की कहानी याद है। जिसे मैं बचपन में पढ़ा करता था। कव्वे को कहीं से एक रोटी का टुकड़ा मिल गया। लोमड़ी ने रोटी का टुकड़ा देखा तो लगी उसकी आवाज़ की ता’रीफ़ करने, बेवक़ूफ कव्वे ने ख़ुश हो कर जैसे ही चोंच खोली रोटी का टुकड़ा ज़मीन पर गिर पड़ा और लोमड़ी ले कर भाग गई।”

    तहसीन मियाँ आया समझ में? तुम्हें अपने नाम तहसीन के म'आनी मा’लूम हैं। तहसीन-ब-मा'नी-ता’रीफ़, मगर याद रखना, झूटी ता’रीफ़ से बच कर रहना, वर्ना तुम्हारे दोस्त झूटी ता’रीफ़ के लड्डू खिला कर तुम्हें बेवक़ूफ बनाते रहेंगे। इसमें नुक़्सान तुम्हारा होगा। अच्छा अब मूड ख़राब करो, मैं तुम्हारे लिए बाज़ार से एक और नई कैप ख़रीद कर लाऊँगा।

    तहसीन मियाँ ये सुन कर चाचा के गले में झूल गए। उन्हें ता’रीफ़ के लड्डूओं की हक़ीक़त भी मा’लूम हुई और एक नई कैप भी मिल गई।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए