शमा, नन्ही मुनी प्यारी सी लड़की थी। ख़ूबसूरत गोल गोल आँखें, सेब जैसे होंट और अनार की तरह उसका सुर्ख़ रंग था। वो आँखें झपक कर बातें करती। उसका चेहरा हर वक़्त मुस्कुराता रहता था। हंसते हंसते उसका बुरा हाल हो जाता और उसकी अक्सर हिचकी बंध जाती। इस मौक़ा पर उसकी अम्मी उसे मिस्री की एक डली देतीं। शमा उसे मुँह में डाल कर चूसने लगती और साथ साथ अपनी अम्मी से मीठी मीठी बातें भी करती।
शमा की ज़बान मोटी थी। वो लफ़्ज़ आसानी से ना बोल सकती थी। वो लफ़्ज़ आसानी से ना बोल सकती थी। इसलिए सब उसे तोतली शहज़ादी कहते थे। वो तुत, बुत, ज़बान में बातें करती, तो हर एक को उस पर बे-इख़्तियार प्यार जाता। उसकी सहेलियाँ कहतीं ‘‘शमा तुम बड़ी ख़ुश-क़िस्मत हो तुम्हें तो खाने को मिस्री की डलियां मिलती रहती हैं।’’ शमा ये सुनकर फूली ना समाती और अपनी तोतली ज़बान में पहाड़े दोहराना शुरू कर देती
‘‘अत्त दूनी दूनी, दो दूनी चार तिन दूनी तय, ताल दूनी अथ’’ वो तीसरी जमात में पढ़ती थी, मगर उसे सब पहाड़े याद थे। अंग्रेज़ी की नज़्में भी उसे आती थीं। वो अपनी मैना को ये नज़्में सुनाती और दिल ही दिल में बहुत ख़ुश होती। उनका घर एक पहाड़ी पर था एक शाम वो अपनी गुड़िया के साथ सैर के लिए बाहर निकली, तो दरख़्त की ओट में एक बोना छिपा हुआ था तोतली शहज़ादी को देखते ही वो सामने आगया, उस के सर पर एक हैट था, जिस पर चिड़ियों का घोंसला बना हुआ था। उसे देखकर तोतली शहज़ादी की हंसी निकल गई। हंसते हंसते उसे हिचकी आगई और वो लोट-पोट हो कर ज़मीन पर गिर गई। बौना दौड़ा दौड़ा उस के पास आगया, तोतली शहज़ादी अभी तक हंस रही थी। बौने ने ये हाल देखा तो उसकी भी हंसी निकल गई। वो शहज़ादी से कुछ पूछना चाहता था कि उसे भी हिचकी आगई
शहज़ादी ने मिस्री की डली मुँह में डाली और बौने से पूछा
‘‘त्यूँ (क्यों) मियाँ बौने तुम्हें भी हंसी के साथ हितकी आती है।’’
बौने ने ‘‘हाँ’’ कहते हुए अपना सर हिलाया।
शहज़ादी ने उसे भी मिस्री की एक डली निकाल कर दी, उसे चूसते ही बौने मियाँ ठीक हो गए और शहज़ादी से पूछने लगे। ‘‘ये तो बड़ी अच्छी चीज़ है। मेरे पाँच दोस्तों को भी इसी तरह हिचकी आजाती है। तुम उन सबको ये चीज़ खिला दो।’’
शहज़ादी ने कहा ‘‘क्यों नहीं। कल शाम को इसी वक़्त तुम अपने दोस्तों के साथ बाग़ में आजाना।’’ बौना ये सुनकर उछला और ख़ुशी ख़ुशी अपने मकान की तरफ़ चल दिया। ये सब बौने मिट्टी के एक कच्चे मकान में रहते थे।
घर जाकर बौने ने अपने साथियों को ख़ुश-ख़बरी सुनाई और कहा कि कल शाम को उनकी शहज़ादी के यहाँ दावत है। उधर तोतली शहज़ादी ने महीने में जो पैसे जमा किए हुए थे, उनकी मिस्री ख़रीदी। उसकी अम्मी ने इस पार्टी के लिए शहद का तोहफ़ा दिया और शहज़ादी दावत के इंतिज़ाम में मसरूफ़ हो गई।
उसने अपनी गुड़िया की शादी के लिए एक मुन्ना सा टी सेट ख़रीद रखा था। गुड़िया से इजाज़त लेकर उसने ये टी सेट उठाया और शाम से पहले पहले बाग़ में चली आई। ख़ूबसूरत घास पर उसने दुस्तरख़्वान बिछाया। उस वक़्त तक सब बौने वहाँ पहुँच चुके थे। उन्होंने ख़ूबसूरत टोपियाँ पहन रखी थीं। एक बौने के हाथ में बाँसुरी थी, जब कि दूसरों के हाथों में रंग बिरंग गुब्बारे उड़ रहे थे। वो सारे दस्तर-ख़्वान के पास बैठ गए और खाना शुरू करना चाहते थे। तब तोतली शहज़ादी ने कहा कि दावत से पहले सब बारी बारी हँसें, ताकि हंसते हंसते हर एक को हिचकी बंध जाये और दावत का ख़ूब मज़ा आजाए। इस सवाल पर एक बौना मुँह बिसूर कर बैठ गया, उस के चेहरे को देखकर सबकी हंसी निकल गई। उस के बाद शहज़ादी ने ताली बजाई और सब ठीक हो कर बैठ गए। शहज़ादी ने हर एक के सामने एक एक कप रखा। उस में थोड़ा थोड़ा सा शहद डाला और साथ साथ मिस्री की एक एक डली दी, जिसे मुँह में डालते ही सबकी हिचकी जाती रही।
फिर उन्होंने शहद खाया और नीबू मिला पानी पिया। उसका ज़ाएक़ा उन्हें बहुत अच्छा लगा। शहज़ादी ने बौनों से कहा कि अम्मी कहती हैं ‘‘मिस्री डली तूसने से हितकी ख़त्म हो दाती है।’’ (मिस्री की डली चूसने से हिचकी ख़त्म हो जाती है) ये वाक़ई ईलाज था। दावत के बाद एक बौने ने क़रीब की नदी के पानी से सारे कप धोए और उन्हें साफ़ कर के शहज़ादी को दे दिए। शहज़ादी ने उसका शुक्रिया अदा किया और घर वापस चली आई। गुड़िया का टी सेट दुबारा डिब्बे में बंद किया और अपने कमरे में सोने के लिए चली गई। रात को उसने बड़ा ही ख़ूबसूरत ख़्वाब देखा। एक बौना बारीक सी तार पर नाच रहा था और बाक़ी बौने तालियाँ बजा रहे थे और ख़ुश हो रहे थे। इस मंज़र को देखकर शहज़ादी की हंसी निकल गई। उस की आँख खुली तो अम्मी क़रीब ही खड़ी थीं। सुब्ह होने वाली थी। अम्मी ने पूछा ‘‘तू ख़्वाब में क्यों हंस रही थी?’’
तोतली शहज़ादी कोई जवाब देने की बजाय हँसने लगी और फिर ख़ुद ही उसने अम्मी को सारा ख़्वाब सुना दिया। अम्मी बोलीं ‘‘ये ख़्वाब तुमने सुब्ह के वक़्त देखा है। ऐसे ख़्वाब सच्चे ही होते हैं।’’ शहज़ादी ने कहा। ‘‘वो तैसे (कैसे)?’’
अम्मी ने कहा ‘‘ऐसे, जैसे कि तुम फ़रफ़र बोल रही हो, और तुम्हें हिचकी नहीं आरही।’’
शहज़ादी ने मासूम नज़रों के साथ अम्मी की तरफ़ देखा। और अम्मी फ़ौरन समझ गईं। डिब्बे से मिस्री की डली निकाल कर शहज़ादी को दी और कहा ‘‘अब तुम्हें कभी हिचकी नहीं आएगी’’
‘‘मदर अम्मी मिस्री की दली?’’ (मगर अम्मी मिस्री की डली) और अम्मी उस का मतलब समझ गईं और बोलीं ‘‘हाँ हाँ मिस्री तुम्हें खाने को मिलती रहेगी, तुम्हारे हिस्से की नहीं, गुड़िया के हिस्से की।’’ अम्मी का जवाब सुनकर शहज़ादी बहुत ही ख़ुश हुई।
दूसरे दिन शाम को उसे वही बौना मिला। उसने शहज़ादी को अपने घर आने की दावत दी। इस दावत को उसने क़बूल कर लिया और इतवार के दिन बौनों के घर चली गई। बौनों ने शहज़ादी के लिए मीठा शरबत तय्यार किया और तोस मक्खन भी शहज़ादी को खिलाया। उसके बाद बौनों ने उसे गुलाब का फूल दिया और कहा के इसे पानी में भिगो कर खा लो।’’
शहज़ादी ने ऐसा ही किया और उस फूल की पत्तियाँ पानी में भिगो भिगो कर खानी शुरू कर दीं। वो रोज़ाना एक पत्ती खाती, जिससे उसकी तोतली ज़बान ठीक होती चली गई।
शहज़ादी ने बौनों से पूछा कि मैं तो अब अच्छी तरह से बातें कर सकती हूँ। तुम्हें किस ने बताया है, कि गुलाब के फूल की पत्तियाँ खाने से तोतली ज़बान ठीक हो जाती है।
इस सवाल पर सब बौने खिल-खिला कर हँसने लगे। उन्होंने बताया कि लुक़्मान हकीम ने ये ईलाज अपनी एक किताब में लिखा है। शहज़ादी ने बौनों की हिचकी की आदत दूर की, उन्होंने उसकी तुत, बुत, ज़बान को सही कर दिया। शम्मा आजकल कॉलेज में पढ़ रही है अब उसे कोई भी तोतली शहज़ादी नहीं कहता।
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