अहमद हमदानी के शेर
अब ये होगा शायद अपनी आग में ख़ुद जल जाएँगे
तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पाएँगे
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क्यूँ हमारे साँस भी होते हैं लोगों पर गिराँ
हम भी तो इक उम्र ले कर इस जहाँ में आए थे
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अजीब वहशतें हिस्से में अपने आई हैं
कि तेरे घर भी पहुँच कर सकूँ न पाएँ हम
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किस को बताएँ अब कि न चल कर तमाम उम्र
हम ने ख़ुद अपने आप में कितना सफ़र किया
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तू मयस्सर था तो दिल में थे हज़ारों अरमाँ
तू नहीं है तो हर इक सम्त अजब रंग-ए-मलाल
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वो मेरी राह में काँटे बिछाए मैं लेकिन
उसी को प्यार करूँ उस पे ए'तिबार करूँ
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न जाने आज ये किस का ख़याल आया है
ख़ुशी का रंग लिए हर मलाल आया है
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