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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अमीक़ हनफ़ी

1928 - 1988 | दिल्ली, भारत

आधुनिक उर्दू शायरी और आलोचना का महत्वपूर्ण नाम। भारतीय दर्शन और संगीत से गहरी दिलचस्पी। आल इंडिया रेडियो से संबंधित थे।

आधुनिक उर्दू शायरी और आलोचना का महत्वपूर्ण नाम। भारतीय दर्शन और संगीत से गहरी दिलचस्पी। आल इंडिया रेडियो से संबंधित थे।

अमीक़ हनफ़ी

ग़ज़ल 18

नज़्म 25

अशआर 20

इश्क़ के हिज्जे भी जो जानें वो हैं इश्क़ के दावेदार

जैसे ग़ज़लें रट कर गाते हैं बच्चे स्कूल में

ख़्वाब जो देखे थे उन की सज़ा तो मिल गई

बारहा देखा जिन्हें उन का सिला मिलता नहीं

ख़्वाहिशों की बिजलियों की जलती बुझती रौशनी

खींचती है मंज़रों में नक़्शा-ए-आसाब सा

वो जब मुझ को देख रही थी मैं ने उस को देख लिया था

बस इतनी सी बात थी लेकिन बढ़ते बढ़ते कितनी बढ़ी है

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सुकूत तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का इक गराँ लम्हा

बना गया है सदाओं का सिलसिला मुझ को

पुस्तकें 13

ऑडियो 19

ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में

कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं

कौन है ये मतला-ए-तख़ईल पर महताब सा

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