अनवर जलालपुरी
ग़ज़ल 5
अशआर 9
कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िंदगी क्या है
ज़मीं से एक मुट्ठी ख़ाक ले कर हम उड़ा देंगे
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चाहो तो मिरी आँखों को आईना बना लो
देखो तुम्हें ऐसा कोई दर्पन न मिलेगा
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न जाने क्यूँ अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है
मैं काग़ज़ हाथ में लेकर फ़क़त चेहरा बनाता हूँ
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मुसलसल धूप में चलना चराग़ों की तरह जलना
ये हंगामे तो मुझ को वक़्त से पहले थका देंगे
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सभी के अपने मसाइल सभी की अपनी अना
पुकारूँ किस को जो दे साथ उम्र भर मेरा
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