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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आरिफ़ इमाम

ग़ज़ल 13

अशआर 13

तलाश-ए-रिज़्क़ का ये मरहला अजब है कि हम

घरों से दूर भी घर के लिए बसे हुए हैं

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बना रहा हूँ अभी घर को आइना-ख़ाना

फिर अपने हाथ में पत्थर भी देखना है मुझे

तुम्हारे हिज्र में मरना था कौन सा मुश्किल

तुम्हारे हिज्र में ज़िंदा हैं ये कमाल किया

हवस जान तुझे छू के देखना ये है

तुझे ही देख रहे हैं कि ख़्वाब देखते हैं

इक बरस हो गया उसे देखे

इक सदी गई है साल के बीच

वीडियो 4

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

आरिफ़ इमाम

आरिफ़ इमाम

आरिफ़ इमाम

आरिफ़ इमाम

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