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अर्श मलसियानी

1908 - 1979 | जालंधर, भारत

मशहूर शायर जोश मलसियानी के पुत्र

मशहूर शायर जोश मलसियानी के पुत्र

अर्श मलसियानी

ग़ज़ल 53

नज़्म 33

अशआर 26

'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ

सब के सब दोस्त हैं दुश्मन की तरफ़

इश्क़-ए-बुताँ का ले के सहारा कभी कभी

अपने ख़ुदा को हम ने पुकारा कभी कभी

दाग़-ए-दिल से भी रौशनी मिली

ये दिया भी जला के देख लिया

पी लेंगे ज़रा शैख़ तो कुछ गर्म रहेंगे

ठंडा कहीं कर दें ये जन्नत की हवाएँ

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सज्दे करते भी हैं ख़ुद इंसाँ दर-ए-इंसाँ पे रोज़

और फिर कहते भी हैं बंदा ख़ुदा होता नहीं

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नअत 1

 

पुस्तकें 184

वीडियो 3

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

अर्श मलसियानी

कभी इस मकाँ से गुज़र गया कभी उस मकाँ से गुज़र गया

अर्श मलसियानी

तुम न आओ तो नामा-बर ही सही

अर्श मलसियानी

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