अज़हर फ़राग़
ग़ज़ल 20
नज़्म 1
अशआर 48
एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं
हम जो सहराओं की मिट्टी के घड़े होते हैं
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तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है
पेड़ तस्वीर में बचा लिया जाए
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तुझ से कुछ और त'अल्लुक़ भी ज़रूरी है मिरा
ये मोहब्बत तो किसी वक़्त भी मर सकती है
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क़ितआ 1
वीडियो 3
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