बासिर सुल्तान काज़मी के शेर
अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए
अब किया करते हैं हम सूरत-ए-हालात पे बात
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तू जब सामने होता है
और कहीं होता हूँ मैं
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'बासिर' तुम्हें यहाँ का अभी तजरबा नहीं
बीमार हो? पड़े रहो, मर भी गए तो क्या
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ख़त्म हुईं सारी बातें
अच्छा अब चलता हूँ मैं
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चमकी थी एक बर्क़ सी फूलों के आस-पास
फिर क्या हुआ चमन में मुझे कुछ ख़बर नहीं
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कैसे याद रही तुझ को
मेरी इक छोटी सी भूल
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टैग : सवाल
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जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा
बस आज आने वाले थे हम आप की तरफ़
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रुक गया हाथ तिरा क्यूँ 'बासिर'
कोई काँटा तो न था फूलों में
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
मौजिब-ए-रंग-ए-चमन ख़ून-ए-शहीदाँ निकला
मौत की जेब से भी ज़ीस्त का सामाँ निकला
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टैग : शहीद
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बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई
रूह जूया-ए-हम-सुबू थी बहुत
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अब दिल को समझाए कौन
बात अगरचे है माक़ूल
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कुछ तो हस्सास हम ज़ियादा हैं
कुछ वो बरहम ज़ियादा होता है
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टैग : बरहम
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दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
फूल को खिलने से मतलब है चमन कोई भी हो
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