फ़राग़ रोहवी के दोहे
नफ़रत के संसार में खेलें अब ये खेल
इक इक इंसाँ जोड़ के बन जाएँ हम रेल
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कैसे अपने प्यार के सपने हों साकार
तेरे मेरे बीच है मज़हब की दीवार
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
भूल गए हर वाक़िआ बस इतना है याद
माल-ओ-ज़र पर थी खड़ी रिश्तों की बुनियाद
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया