जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल 11
नज़्म 1
अशआर 12
अभी तक फ़स्ल-ए-गुल में इक सदा-ए-दर्द आती है
वहाँ की ख़ाक से पहले जहाँ था आशियाँ मेरा
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आएँ पसंद क्या उसे दुनिया की राहतें
जो लज़्ज़त-आश्ना-ए-सितम-हा-ए-नाज़ था
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कुछ इज़्तिराब-ए-इश्क़ का आलम न पूछिए
बिजली तड़प रही थी कि जान इस बदन में थी
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हँसे भी रोए भी लेकिन न समझे
ख़ुशी क्या चीज़ है दुनिया में ग़म क्या
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