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नअत1
जिगर मुरादाबादी के क़िस्से
किसी बुलबुल का दिल जला होगा
एक बार मुशायरा हो रहा था। एक मुस्लिम-उल-सबूत उस्ताद उठे और उन्होंने तरह का एक मिसरा दिया, “आ रही है चमन से बू-ए-कबाब” बड़े-बड़े शायरों ने तब्अ-आज़माई की लेकिन कोई गिरह न लगा सका। उनमें से एक शायर ने क़सम खा ली कि जब तक गिरह न लगाएंगे, चैन से नहीं
रिंद से मौलवी
एक बार जोश मलीहाबादी ने जिगर साहब को छेड़ते हुए कहा, “क्या इबरतनाक हालत है आपकी, शराब ने आपको रिंद से मौलवी बना दिया और आप अपने मक़ाम को भूल बैठे। मुझे देखिए में रेल के खम्बे की तरह अपने मक़ाम पर आज भी वहाँ अटल खड़ा हूँ, जहाँ आज से कई साल पहले था।” जिगर
जिगर साहब ये मस्जिद नहीं रेस्टोरेंट है
एक बार जिगर, शौकत थानवी और मजरूह सुलतानपुरी दोपहर के वक़्त कहीं काम के लिए बाहर निकले थे तो इरादा किया गया कि नमाज़ अदा की जाए। शौकत साहब एक काम के लिए चले गए। जिगर साहब मस्जिद के बजाए एक रेस्टोरेंट में जा घुसे। मजरूह ने कहा, “जिगर साहब, ये मस्जिद