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मनमोहन तल्ख़

1931 - 2001 | दिल्ली, भारत

प्रमुख आधुनिक शायर/यास यगाना चंगेज़ी के शार्गिद

प्रमुख आधुनिक शायर/यास यगाना चंगेज़ी के शार्गिद

मनमोहन तल्ख़

ग़ज़ल 34

नज़्म 4

 

अशआर 14

बार-हा ख़ुद पे मैं हैरान बहुत होता हूँ

कोई है मुझ में जो बिल्कुल ही जुदा है मुझ से

मैं ख़ुद में गूँजता हूँ बन के तेरा सन्नाटा

मुझे देख मिरी तरह बे-ज़बाँ बन कर

ये अब घरों में पानी धूप है जगह

ज़मीं ने 'तल्ख़' ये शहरों को बद-दुआ दी है

ये 'तल्ख़' किया क्या है ख़ुद से भी गए तुम तो

मरना ही किसी पर था तुम ख़ुद पे मरे होते

साबित ये मैं करूँगा कि हूँ या नहीं हूँ मैं

वहम यक़ीं का कोई दो-राहा नहीं हूँ मैं

पुस्तकें 12

ऑडियो 9

अभी शुऊर ने बस दुखती रग टटोली है

आएँ आँसू अगर आँखों में तो बस पी जाएँ

कुछ देर तो सब कुछ टूटने का माहौल रहा

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