मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल 19
नज़्म 2
पुस्तकें 14
चित्र शायरी 1
नूह का तूफ़ान इक आँसू से बरपा कीजिए जी में आता है कि अब क़तरे को दरिया कीजिए बे-ख़बर बन जाइए या अहद पूरा कीजिए जिस तरह से आप का जी चाहे अच्छा कीजिए ईसी-ए-दौराँ सही लेकिन कोई शाहिद भी हो हम अभी तो जी उठेंगे आप इशारा कीजिए हो चुका होना था जो कुछ जाइए बस जाइए मरने वाले को न अब लिल्लाह रुस्वा कीजिए फिर ज़रा झलकी दिखा कर इक ज़रा छुप जाइए दिल के हर ज़र्रे में आबाद एक दुनिया कीजिए दिल हमारा है हम इस के हैं अज़ल से राज़-दार आप ख़ुद आ कर सर-ए-बाज़ार रुस्वा कीजिए कौन कहता है कि इन क़िस्सों को फिर दोहराइए दिल की आबादी मिटा कर ज़िक्र-ए-सहरा कीजिए राज़दारी इश्क़ में 'आलिम' नहीं छोटी सी बात दिल ही दिल में सोचता रहता हूँ अब क्या कीजिए