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मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

1936 - 2020 | दिल्ली, भारत

प्रमुख आधुनिक शायरों में विख्यात

प्रमुख आधुनिक शायरों में विख्यात

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

ग़ज़ल 51

नज़्म 37

अशआर 33

अब तक तो ख़ुद-कुशी का इरादा नहीं किया

मिलता है क्यूँ नदी के किनारे मुझे कोई

बचपन में आकाश को छूता सा लगता था

इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं

भेड़िये और इश्तिराक-शुदा

बीच में इक हिरन हलाक-शुदा

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रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थी

शायद ये तमाशा मिरे हँसने के लिए था

सुना दोस्तो तुम ने कि शायर हैं 'मुज़फ़्फ़र' भी

ब-ज़ाहिर आदमी कितने भले मालूम होते हैं

बच्चों की कहानी 2

 

पुस्तकें 138

चित्र शायरी 1

 

ऑडियो 6

क्या वस्ल की साअत को तरसने के लिए था

कहाँ तो पा-ए-सफ़र को राह-ए-हयात कम थी

ख़ुश्क आँखों से निकल कर आसमाँ पर फैल जा

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