पल्लव मिश्रा का परिचय
वो नशा है के ज़बाँ अक़्ल से करती है फ़रेब
तू मिरी बात के मफ़्हूम पे जाता है कहाँ
पल्लव मिश्रा बिहार के ज़िला सहरसा में 3 सितंबर 1998 में पैदा हुए। इब्तिदाई तालीम नालंदा के सैनिक स्कूल से हासिल की। फिर आला तालीम के लिए दिल्ली आ गए। उन्होंने 2019 में आई.पी. यूनीवर्सिटी, दिल्ली से जर्नलिज़्म और मास कम्यूनिकेशन में बैचलर्ज़ की डिग्री हासिल की।
वो उर्दू शेर-ओ-अदब में नौजवान नसल के मक़बूल तरीन शायरों की सफ़ में शामिल हैं, साथ ही साथ मज़मून-निगारी और तर्जुमा-निगारी के फ़न में भी तब्अ-आज़माई करते हैं।
इस वक़्त दिल्ली में मुक़ीम हैं और हिन्दुस्तान की अदबी और तहज़ीबी तंज़ीम रेख़्ता में मसरूफ़-ए-कार हैं।
पल्लव मिश्रा उर्दू शायरी के उफ़ुक़ पर एक रौशन सितारे की तरह उभर रहे हैं। उनकी ग़ज़लें ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ पहलुओं, जज़्बात की नज़ाकत और एहसासात की गहराई को इंतिहाई दिलकश अंदाज़ में पेश करती हैं। उनके अशआर में ज़बान की लताफ़त और ख़याल की बुलंदी का वो इम्तिज़ाज है जो क़ारी के दिल-ओ-दिमाग़ पर देर-पा असर छोड़ता है।
पल्लव मिश्रा की शायरी मोहब्बत, ग़म और इन्सानियत जैसे मौज़ूआत को निहायत मोअस्सर अंदाज़ में पेश करती है। उनकी ग़ज़लों में एक तरफ़ रिवायत की लताफ़त महसूस होती है तो दूसरी तरफ़ जिद्दत की ख़ुशबू भी नुमायाँ है। वो अपने अशआर में निहायत सादा लेकिन पुर-असर ज़बान का इस्तेमाल करते हैं, जो उनके कलाम को हर तबक़े के सुनने-पढ़ने वाले के लिए क़ाबिल-ए-क़ुबूल और दिलकश बनाता है।
उनकी ग़ज़लों की इन्फ़िरादियत ये है कि हर शेर एक मुनफ़रिद मंज़र पेश करता है, जैसे ज़िंदगी की एक नई झलक दिखा रहा हो। उनके यहाँ रदीफ़-ओ-क़ाफ़िया की हम-आहंगी और लफ़्ज़ों की तर्तीब में वो कमाल नज़र आता है, जो एक माहिर फ़नकार की पहचान है। उनके अशआर की मानवियत क़ारी को बार-बार वापसी पर मजबूर करती है, हर बार एक नई जिहत से रू-शनास कराती है।
पल्लव मिश्रा की शायरी का एक और ख़ूबसूरत पहलू ये है कि वो हर बात को इस क़दर सलीक़े और नफ़ासत से बयान करते हैं कि क़ारी और सामईन को महसूस होता है जैसे ये अशआर उसके अपने दिल की आवाज़ हैं। उनकी ग़ज़लों में एक ख़ास क़िस्म की ताज़गी और रवानी है, जो क़ारी को मस्हूर किए रखती है।
पल्लव मिश्रा की ग़ज़लें न सिर्फ़ ज़बान की ख़ूबसूरती की आईना-दार हैं, बल्कि वो ज़िंदगी की गहरी तफ़हीम और इंसानी रवय्यों के बयान की बेहतरीन मिसाल भी हैं। उनका कलाम, सुनने-पढ़ने वाले को न सिर्फ़ लज़्ज़त-ए-समाअत बख़्शता है, बल्कि उसे सोचने और महसूस करने के नए ज़ाविए भी अता करता है।
पल्लव मिश्रा की ग़ज़लें उर्दू शायरी के लिए एक क़ीमती इज़ाफ़ा हैं और उनका कलाम क़ारी को ज़िंदगी की ख़ूबसूरती और नज़ाकत को एक मुनफ़रिद अंदाज़ में देखने की दावत देता है।