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रियाज़ ख़ैराबादी

1853 - 1934 | ख़ैराबाद, भारत

शराब पर शायरी के लिए प्रसिध्द , जब कि कहा जाता है कि उन्हों ने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया।

शराब पर शायरी के लिए प्रसिध्द , जब कि कहा जाता है कि उन्हों ने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया।

रियाज़ ख़ैराबादी

ग़ज़ल 130

अशआर 112

क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'

मुझ से लिपटे हैं मिरे नाम से डरने वाले

जिस दिन से हराम हो गई है

मय ख़ुल्द-मक़ाम हो गई है

मर गया हूँ पे तअ'ल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से

मेरे हिस्से की छलक जाती है पैमाने से

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मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे

साथ क़श्क़े के है ज़ुन्नार-ए-बरहमन कैसा

शोख़ी से हर शगूफ़े के टुकड़े उड़ा दिए

जिस ग़ुंचे पर निगाह पड़ी दिल बना दिया

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नअत 1

 

पुस्तकें 11

चित्र शायरी 4

 

ऑडियो 3

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

बाम पर आए कितनी शान से आज

कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते

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