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साहिर होशियारपुरी

1913 - 1972 | फरीदाबाद, भारत

साहिर होशियारपुरी

ग़ज़ल 28

नज़्म 3

 

अशआर 13

अपनी अपनी ज़ात में गुम हैं अहल-ए-दिल भी अहल-ए-नज़र भी

महफ़िल में दिल क्यूँकर बहले महफ़िल में तन्हाई बहुत है

कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है

ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है

जब बिगड़ते हैं बात बात पे वो

वस्ल के दिन क़रीब होते हैं

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दिल वो सहरा है कि जिस में रात दिन

फूल खिलते हैं बहार आती नहीं

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वो और होंगे पी के जो सरशार हो गए

हर जाम से हमें तो नई तिश्नगी मिली

क़ितआ 11

रुबाई 2

 

बच्चों की कहानी 1

 

पुस्तकें 27

चित्र शायरी 2

 

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