शीन काफ़ निज़ाम
ग़ज़ल 35
नज़्म 11
अशआर 32
चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा
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गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है 'निज़ाम'
चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा
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तू अकेला है बंद है कमरा
अब तो चेहरा उतार कर रख दे
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मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे
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दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
सख़्त जाँ में भी नर्म गोशे हैं
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दोहा 4
पुस्तकें 27
वीडियो 8
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