बहुत दुश्वार है अब आइने से गुफ़्तुगू करना
बहुत दुश्वार है अब आइने से गुफ़्तुगू करना
सज़ा से कम नहीं है ख़ुद को अपने रू-ब-रू करना
'अजब सीमाबियत है इन दिनों अपनी तबी'अत में
कि जिस ने बात की हँस कर उसी की आरज़ू करना
इबादत के लिए ततहीर-ए-दिल की भी ज़रूरत है
वुज़ू के बा'द फिर अश्क-ए-नदामत से वुज़ू करना
ये वस्फ़-ए-ख़ास है कुछ आप से बा-वस्फ़ लोगों का
हमें आता नहीं है आप को लम्हे में तू करना
तिरी फ़ितरत में यूँ मुसबत इशारे ढूँडता हूँ मैं
किसी सहरा को जैसे चाहता हूँ आबजू करना
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