दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा
दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा
जब कभी कमरे में मैं तन्हा रहा
उम्र की नद्दी चढ़ी, उतरी, गई
जिस्म का सहरा मगर जलता रहा
दिन को तपती फ़ाइलों की रेत पर
मैं तो अबरक़ की तरह बिखरा रहा
रात भर इक जिस्म की दीवार से
मैं कैलन्डर की तरह चिपका रहा
शब पलंग पर हाँपते साए रहे
ख़्वाब दरवाज़े खड़ा तकता रहा
याद की डिब्बी में क्यूँ रक्खो मुझे
मैं जली तीली हूँ, मुझ में क्या रहा
- पुस्तक : (Beesvin Sadi Main) Maghrabi Bengal Ke urdu Shora (पृष्ठ 311)
- रचनाकार : Mushtaq ahmed M.A
- प्रकाशन : Iqbal Ahmad And Baradars Sayed Suleh Len Kolkata (1972)
- संस्करण : 1972
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