दिन को कह दें रात हम समझे नहीं
दिन को कह दें रात हम समझे नहीं
आप की ये बात हम समझे नहीं
हम कि इक रेहन-ए-क़फ़स बिस्मिल-नफ़स
आसमाँ हैं सात हम समझे नहीं
क्या समझ में आए ज़ात-ए-मा-सिवा
मा-सिवा-ए-ज़ात हम समझे नहीं
इश्क़ से बाज़ आते हम दीवाने क्या
थी समझ की बात हम समझे नहीं
अल-ग़रज़ है ज़ीस्त मरहून-ए-अजल
ग़ायत-ए-ग़ायात हम समझे नहीं
बात सब की बात से है मुख़्तलिफ़
तेरी 'आमिर' बात हम समझे नहीं
- पुस्तक : Shora-e-London (पृष्ठ 147)
- रचनाकार : Johar Zahiri
- प्रकाशन : Books From India (U.K) Ltd. 45, Museum Street,Londan W.C-1 (1985)
- संस्करण : 1985
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