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कब अपने होने का इज़हार करने आती है

काशिफ़ मजीद

कब अपने होने का इज़हार करने आती है

काशिफ़ मजीद

MORE BYकाशिफ़ मजीद

    कब अपने होने का इज़हार करने आती है

    ये आग मुझ को नुमूदार करने आती है

    मैं दिन में ख़्वाब बनाता हूँ रंग रंग के ख़्वाब

    मगर ये रात उन्हें मिस्मार करने आती है

    अँधेरा जाता है जब भी उलट-पलट के मुझे

    तो रौशनी मुझे हमवार करने आती है

    हवा-ए-कूचा-ए-दुनिया मैं जानता हूँ तुझे

    तू जब भी आती है बीमार करने आती है

    जो दिल से होती हुई रही है मेरी तरफ़

    ये लहर मुझ को ख़बर-दार करने आती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Istifsaar (पृष्ठ 43)
    • रचनाकार : Sheen Kaaf Nizam, Aadil Raza Mansoori
    • प्रकाशन : Aadil Raza Mansoori (Issue No. 1, Oct To Dec. 2013)
    • संस्करण : Issue No. 1, Oct To Dec. 2013

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