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रौशनी चश्म-ए-ख़रीदार में आती ही नहीं

सिराज अजमली

रौशनी चश्म-ए-ख़रीदार में आती ही नहीं

सिराज अजमली

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    रोचक तथ्य

    Vol. 262, November 2002

    रौशनी चश्म-ए-ख़रीदार में आती ही नहीं

    कुछ कमी रौनक़-ए-बाज़ार में आती ही नहीं

    उस से कुछ ऐसा तअल्लुक़ है कि शिद्दत जिस की

    किसी पैराया-ए-इज़हार में आती ही नहीं

    जो नहीं होता बहुत होती है शोहरत उस की

    जो गुज़रती है वो अशआ'र में आती ही नहीं

    सख़्त हैराँ हूँ सलाहिय्यत-ए-ख़ैबर-शिकनी

    वारिस-ए-हैदर-ए-कर्रार में आती ही नहीं

    तुम ने देखी है अजब कैफ़ियत-ए-चश्म 'सिराज'

    बात वो नर्गिस-ए-बीमार में आती ही नहीं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Shabkhoon (Urdu Monthly) (पृष्ठ 1134)
    • रचनाकार : Shamsur Rahman Faruqi
    • प्रकाशन : Shabkhoon Po. Box No.13, 313 rani Mandi Allahabad (June December 2005áIssue No. 293 To 299âPart II)
    • संस्करण : June December 2005áIssue No. 293 To 299âPart II

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