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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सज़ा से बच के कई बार शातिरों की तरह

नजमी सिद्दीक़ी

सज़ा से बच के कई बार शातिरों की तरह

नजमी सिद्दीक़ी

MORE BYनजमी सिद्दीक़ी

    सज़ा से बच के कई बार शातिरों की तरह

    मैं अपने सामने आया हूँ मुजरिमों की तरह

    वो ज़ख़्म जिन का बदन पर निशाँ नहीं पड़ता

    वही तो खुलते हैं सपनों में रौज़नों की तरह

    हर एक मोड़ पे तज्दीद-ए-अहद लाज़िम था

    वो शख़्स था कोई पुर-पेच रास्तों की तरह

    यही ख़याल मुझे के चीर-फाड़ गया

    मिले हैं दोस्त भी यूसुफ़ के भाइयों की तरह

    ज़मीन पाँव तले है आसमाँ सर पर

    पड़े हैं घर में कई लोग बे-घरों की तरह

    गया तो कुछ रहा मेरे पास जीने को

    ग़नीम था वो जो आया था दोस्तों की तरह

    ये और बात कि ज़ाहिर में कुछ नहीं लगते

    बुलंद-ओ-बाला हैं कुछ लोग पर्बतों की तरह

    वो रास्ते जो तिरे साथ चल के तय होते

    लिपट गए मिरे पाँव में दाएरों की तरह

    पलक झपकने में इक उम्र कट गई 'नजमी'

    गुज़र गए हैं कई साल साअतों की तरह

    स्रोत :
    • पुस्तक : Pakistani Adab (पृष्ठ 704)
    • रचनाकार : Dr. Rashid Amjad
    • प्रकाशन : Pakistan Academy of Letters, Islambad, Pakistan (2009)
    • संस्करण : 2009

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