शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो
शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो
कि जोड़ दे कोई टुकड़ा शब-ए-जुदाई का
व्याख्या
शब-ए-विसाल के सम्बंध से शब-ए-जुदाई ने बहुत ही दिलचस्प अंतर्विरोध पैदा किया है और दरअसल इस शे’र का विषय इसी अंतर्विरोध पर आधारित है। मिलन की रात के संक्षिप्त होने का शिकवा उर्दू ग़ज़ल की परम्परा में शामिल है। इसी तरह से शायरों ने जुदाई की रात या शब-ए-फ़िराक़ के दीर्घ होने की शिकायत भी की है। इस शे’र में शब-ए-विसाल यानी मुलाक़ात, शब-ए-फ़िराक़ अर्थात जुदाई के समानुपात में 'बहुत कम', 'जोड़ दे कोई टुकड़ा’ और आसमान के संयोजन ने सुंदरता पैदा की है। आसमान का प्रयोग उर्दू शायरों ने बहुत सी चीज़ों के रूपक या प्रतीक के रूप में किया है। उदाहरण के लिए आसमान को तक़दीर, ख़ुदा(ईश्वर) और समय आदि के रूपकों के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इस शे’र में आसमान वास्तव में समय का एक रूपक है।
शायर संबोधित से कहता है कि महबूब से मुलाक़ात की रात लम्बाई की दृष्टि से बहुत छोटी है। अर्थात जिस रात महबूब से मिलन होता है वो कुछ क्षणों में गुज़र जाती है। इसके मुक़ाबले में महबूब से जुदाई की रात बहुत लम्बी होती है। यानी जब महबूब दूर हो तो रात किसी तरह कटती ही नहीं। इसलिए ऐ संबोधित, तुम समय से कहो कि वो विरह की रात से कोई हिस्सा काट के मिलन की रात में मिला दे ताकि आशिक़ अपने महबूब की निकटता से पूरी तरह आनंदित होसके।
शफ़क़ सुपुरी
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