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सूरज धीरे धीरे पिघला फिर तारों में ढलने लगा

शमीम हनफ़ी

सूरज धीरे धीरे पिघला फिर तारों में ढलने लगा

शमीम हनफ़ी

MORE BYशमीम हनफ़ी

    सूरज धीरे धीरे पिघला फिर तारों में ढलने लगा

    मेरे अंदर का सन्नाटा जाग के आँखें मलने लगा

    शाम ने बर्फ़ पहन रक्खी थी रौशनियाँ भी ठंडी थीं

    मैं इस ठंडक से घबरा कर अपनी आग में जलने लगा

    सारा मौसम बदल चुका था फूल भी थे और आग भी थी

    रात ने जब ये स्वाँग रचाया चाँद भी रूप बदलने लगा

    आवाज़ों के अंग अंग में दर्द के नश्तर चुभने लगे

    प्यासी आँखों के सहरा में रेत का झक्कड़ चलने लगा

    नीले सुर्ख़ सफ़ेद सुनहरे एक एक करके डूब गए

    सम्तों की हर पगडंडी पर काला रंग पिघलने लगा

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    शमीम हनफ़ी

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    शमीम हनफ़ी

    शमीम हनफ़ी,

    शमीम हनफ़ी

    सूरज धीरे धीरे पिघला फिर तारों में ढलने लगा शमीम हनफ़ी

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