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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : आसी उल्दनी

प्रकाशक : सिद्दीक़ बुक डिपो, लखनऊ

प्रकाशन वर्ष : 1931

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : व्याख्या

पृष्ठ : 324

सहयोगी : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

mukammal sharh-e-kalam-e-ghalib
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पुस्तक: परिचय

غالب عالمی شہرت یافتہ شاعر ہیں۔غالب کے کلام میں فارسی تراکیب، مشکل تشبیہات ،ادق الفاظ اور متنوع موضوعات ایسے ہیں جو عام قارئین کی سمجھ سے بالاتر ہیں۔عمومانئے پڑھنے والوں کے لیے غالب ایک مشکل پسند شاعر ہیں۔خصوصا ان کے دیوان کا ابتدائی حصہ خاصا مشکل ہے۔اس لیے کلام غالب کی شرح ضروری ہے۔زیر نظر"مکمل شرح کلام غالب" غالب کے کلام کو سمجھنے میں معاون ہے۔مرزا اسد اللہ خان غالب کا کلام افکار کی ہمہ گیری اور معنویت کی بے شمار جہتوں سے مالامال ہے۔غالب کا کمال یہی ہے کہ انھوں نے شاعری کی توسط سے لفظو ں کی بندشوں پر اکتفا نہیں کیا ،بلکہ معنویت کے اسرار و رمو زکو اشعار کی روح میں شامل کردیا ہے۔یہی وجہ ہے کہ ان کے ایک ایک مصرعے اور ایک ایک شعر میں کئی معنوں کی دنیاآباد ہیں۔مختلف ادوار میں مختلف فکر وفن سے وابستہ حضرات نے غالب کی شاعری کے ہمہ جہت پہلوؤں کو واضح کرنے کے لیے شرح دیوان غالب کی تحریر پر خصوصی توجہ دی اور یہ سلسلہ عصر حاضر تک جاری و ساری ہے۔پیش نظر اسی سلسلہ کی ایک کڑی ہے۔ اس شرح میں خاص کر مولانا آسی نے غالب کے غیر مطبوعہ کلام پر دھیان دیا ہے۔ حالانکہ اب وہ تمام کلام کسی نہ کسی شکل میں مطبوعہ ہے۔

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लेखक: परिचय

अब्दुल बारीआसीकी शख़्सियतविभिन्न पहलुओं वाली थी। वो एक अच्छे शायर, क्लासिकी मुतून के व्याख्याकार, उपन्यासकार और अनुवादक थे। आसी का जन्म1893 को मेरठ में हुआ। उनके पिता शेख़ हसामुद्दीन मिर्ज़ा ग़ालिब के शागिर्द और एक अच्छे शायर थे। आसी ने अरबी-ओ-फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त की और शाहजहाँ पुर के एक स्कूल में फ़ारसी के शिक्षक के तौर पर फ़राएज़ अंजाम दिए। कुछ वर्ष तक मोहम्मद अली जौहर के अख़्बार ‘हमदर्द’ में काम किया। उस के बाद वो लखनऊ में  नवलकिशोर प्रकाशन से वाबस्ता हो गए।

घर और आस-पास के शेरी माहौल ने शुरुआत ही से आसी की तबीअत को शायरी की तरफ़ माइल कर दिया था। आग़ाज़-ए-शायरी में मौलाना सिराज अहमद सिराज से इस्लाह ली फिर नातिक़ गुलावठी की शागिर्दी इख़्तियार कर ली। कुछ ग़ज़लें दाग़ देहलवी को भी दिखाईं।

ग़ालिब और हाफ़िज़ के कलाम की व्याख्या अब्दुल बारी आसी के अहम तरीन इल्मी कामों में से है। उन्होंने शायरात का एक तज़किरा भी लिखा जो नवलकिशोर प्रकाशन से ‘तज़कीरा-तुल-ख़वातीन’ के नाम से प्रकाशित हुआ।

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