aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
اس کتا ب کا مقصد انسان کی روحانی ترقی ہے۔ چونکہ اس موڈرن دور میں لوگ مادہ پرستی کی طرف روز بروز مائل ہو رہے ہیں جس سے روحانی ترقی میں ایک خلاء سا پیدا ہو گیا ہے جسے دور کرنے کے لئے یہ کتاب نہایت ہی مفید ہو سکتی ہے۔ اس کتا بچہ میں اس بات کو موضؤع سخن بنایا گیا ہے کہ کس طرح سے خیال کام کرتا ہے۔ وہ کہتا ہے کہ اگر ہم کسی چیز کے بارے میں مسلسل خیال کرنے لگ جائیں تو وہ چیز عالم مثال میں متشکل ہو جاتی ہے جس کو مصف نے مختلف مثالوں سے سمجھانے کی کوشش کی گئی ہے۔
शौक़ क़िदवाई की पैदाइश 1852 में लखनऊ में हुई. कम उम्र में ही उनके वालिद का इन्तेक़ाल हो गया था, इसलिए अपने रिश्तेदारों के साथ अलग-अलग जगहों पर उनकी परवरिश हुई. अठारह साल की उम्र में लखनऊ लौट आये. शौक़ ने अरबी फ़ारसी की पारम्परिक शिक्षा प्राप्त की. लखनऊ के अदबी और शेरी माहौल के असर ने शौक़ को भी शायरी की तरफ़ उन्मुख कर दिया और वह कई क्लासिकी विधाओं में शेर कहने लगे. मुंशी मुहम्मद अली खां असीर के शागिर्द हुए. कुछ अर्से तक फैज़ाबाद में तहसीलदार रहे लेकिन सवभाव के अनुकूल न होने की वजह से इस्तिफ़ा दे दिया और लखनऊ से अख़बार ‘आज़ादी’ जारी किया. उसकेबाद रियासत भोपाल में नौकरी कर ली और व्यवस्थापक के पद तक पहुँच कर सेवानिवृत हुए. अंतिम समय में पुस्तकालय रामपुर से सम्बद्ध हो गये.
शौक़ शायरी के अलावा अदबी, सांस्कृतिक,सामाजिक और राजनैतिक समस्याओँ पर बहुत से आलेख भी लिखे और ड्रामे भी. शौक़ अपने वक़्त में कई स्तर पर सक्रिय रहे,उनकी हैसियत एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे. 27 अप्रैल 1925 को शौक़ का देहांत हुआ.
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