aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
“बहारिस्तान-ए-सुख़न” आबाद लखनवी का इंतिख़ाब है, जिसमें आतिश, नासिख़ और ख़ुद मुरत्तिब आबाद लखनवी का कलाम शामिल है। इस इंतिख़ाब की विशेषता यह है कि इस में तमाम ग़ज़लें हम-तरह हैं यानी तीनों शोअरा की ग़ज़लें एक ही क़ाफ़िया-ओ-रदीफ़ में तलाश कर के शामिल की गई हैं। यह इंतिख़ाब1918 में नवल किशोर लखनऊ, द्वारा प्रकाशित किया गया था। आबाद लखनवी का पूरा नाम मिर्ज़ा मेहदी हसन ख़ान और तख़ल्लुस आबाद है, उनका जन्म 1813 लखनऊ में हुआ और उनकी मृत्यु 1854 में हुई।
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