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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : अंदलीब शादानी

संस्करण संख्या : 002

प्रकाशक : गुलाम एण्ड संस ताजिरान-ए-कुतुब, लाहाैर

मूल : लाहौर, पाकिस्तान

प्रकाशन वर्ष : 1962

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शोध एवं समीक्षा

उप श्रेणियां : ग़ज़ल तन्क़ीद

पृष्ठ : 305

सहयोगी : गवर्नमेंट उर्दू लाइब्रेरी, पटना

daur-e-hazir aur urdu ghazal goi
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पुस्तक: परिचय

"دور حاضر اور اردو غزل گوئی" اردو غزل سے متعلق عندلیب شادانی کے مختلف مضامین کا مجموعہ ہے ۔جس میں مصنف نے اردو غزل گوئی کا عہد بہ عہد جائزہ لیاہے۔مصنف نے کتاب کو آٹھ ابواب میں تقسیم کیا ہے۔پہلے باب میں "دور حاضر اور اردو غزل گوئی کے تحت مضامین فرسودہ ، حسرت کا نظریہ حسن و عشق اور حسرت کی حالات زندگی کو پیش کیا ہے۔دوسرے باب میں اصغر ، فانی ،جگر،کے موضوعات غزل کا تجزیہ، تیسرے باب میں غزل کے مقبول کردار جیسے زاہد ، واعظ ، ناصح،محبوب وغیرہ کی دلچسپ تجزیہ ،چوتھا باب میں منتخبہ واقعات ،پانچواں باب میں فلسفہ و تصوف کے تحت حسرت ،اصغر، فانی اور جگر کی غزلوں کا تجزیہ کیا گیا ہے۔ چھٹا باب غزل کے پیرائیہ، اوزان ، وغیرہ ،ساتواں باب سرقہ شاعری اور آٹھواں باب میں اغلاط حسرت ،اغلاط جگر اور اغلاط فانی پر گفتگو کی گئی ہے۔اس طرح عندلیب شادانی نے حسرت ،اصغر ،فانی اور جگر کے غزلیہ کلام پر مختلف موضوعات کے تحت اردو غزل گوئی کا جائزہ تنقیدی انداز میں لیا ہے۔

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लेखक: परिचय

अंदलीब शादानी की गिनती उर्दू के लोकप्रिय रूमानी शायरों में होता है. वह अपनी शायरी के अति रूमानी फ़िज़ा की वजह से बहुत लोकप्रिय और मशहूर हुए. शायरी के अलावा उन्होंने कहानियां और समालोचनात्मक व जीवनपरक आलेख भी लिखे.
एक मार्च 1904 को पैदा हुए. वतन संभल ज़िला मुरादाबाद था. पंजाब यूनिवर्सिटी से फ़ारसी साहित्य में एम.ए. किया और 1934 में लंदन यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. कुछ समय तक हिन्दू कालेज दिल्ली में उर्दू-फ़ारसी के लेक्चरर रहे, उसकेबाद ढाका यूनिवर्सिटी में लेक्चरर नियुक्त हुए. 29 जुलाई 1969 को ढाका में देहांत हुआ.
उनका काव्य संग्रह  ‘निशात-ए-रफ़्ता’ के नाम से प्रकाशित हुआ. उनकी दूसरी कृतियों के नाम हैं: ‘नक्श-ए-बदीअ’ ‘उर्दू ग़ज़लगोई और दौरे हाज़िर’ ‘सरोद-ए-रफ़्ता, ‘सच्ची कहानियां’ ‘शरह रुबाईयात बाबा ताहिर’ ‘नोश व नीश तहक़ीक़ की रौशनी में’ ‘जदीद फ़ारसी ज़बान में फ़्रांसीसी के असरात’. अंदलीब शादानी ने ‘ख़ावर’ के नाम से एक अदबी रिसाला भी निकाला. उस रिसाले के ज़रिये ढाका में उर्दू अदब व शायरी के हवाले से एक नई जागृति आई.

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